मंगलवार, 19 मई 2020

अंतर के पट खोल...



नवगीत: 

अंतर के पट खोल (16 ,11) 

       
☘️☘️☘️☘️☘️☘️☘️☘️☘️☘️☘️

अंतर के पट खोल तभी तो
                   मन होवे उजियार।
मानव योनि मिली है हमको 
                इसे न कर बेकार  ।।

अंतस में हो अँधियारा जब, 
             दिखता सबकुछ स्याह ।
मन अधीर हो अकुलाए अरु ,
                   दिखे नहीं तब राह।।

दुर्गम जब भी लगे मार्ग तब ,
                       शत्रु लगे संसार ।
अंतर के पट खोल तभी तो ,
                     मन होवे उजियार। ।

जीवन में संघर्ष भरा है,
                     इसका ना पर्याय ।
उद्यम ही कुंजी है इसकी ,
                    दूजा नहीं उपाय।।

घड़ी परीक्षण की जब आए ,
                      मान न मनवा हार।
अंतर के पट खोल तभी तो ,
                      मन होवे उजियार।।

अपनों का जब साथ मिले तो,
                        जीवन हो रंगीन।
दुख की बदरी भी छँट जाए ,
                     समाँ न हो गमगीन।।

निज हित के भावों को त्यागें,
                   कर लें कुछ उपकार।
अंतर के पट खोल तभी तो ,
                      मन होवे उजियार।।

सुधा सिंह 'व्याघ्र✍️





सोमवार, 18 मई 2020

सामाजिक संचार

 गीत :(16,14)


सामाजिक संचार तंत्र ने ,
सबको अपना दास किया ।
ज्ञानवान मानव ने तब से, 
खुद को कारावास दिया ।।

कक्ष रोते, रोती रसोई ,  
स्वच्छता का भान नहीं ।
उनको बनना टिक -टॉक  स्टार ,
घर में बिलकुल ध्यान नहीं ।। 
इंस्टाग्राम सजाने खातिर, 
पत्नी ने अवकाश लिया।

मुखपोथी, टिक टॉक, लाइकी ,
अब तो घर में राज करें  ।
खिंचवाकर सुंदर तस्वीर , 
हम तो खुद पर नाज करें।। 
कम लाइक जब मिले देखकर, 
धक -धक , धक -धक करे जिया ।

स्वास्थ्य की अब नहीं है चिन्ता ,
तन को देखो स्थूल भए।
आभासी दुनिया से जुड़कर, 
रिश्ते -नाते भूल गए ।।
गोदी में संतान की जगह, 
लैपटॉप ने स्थान लिया ।।

सुधा सिंह 'व्याघ्र'

शनिवार, 16 मई 2020

हे कोरोना वीरों...


हे कोरोना वीरों, 
तुम्हें शत- शत प्रणाम ।
दाँव लगाकर प्राणों को , 
करते हो तुम काम।।

कड़ी धूप में स्वेद से तर ,
वर्दी का तुम मान हो रखते।
घुप्प अँधेरी रातों में भी  ,
अपने फ़र्ज का भान हो रखते।।
तुम रखते हो अनुशासन का,
खयाल आठों याम।

हे कोरोना वीरों,
तुम्हें शत शत प्रणाम।।

अस्पताल के खुले कक्ष में,
शौच किया बेशरमों ने।।
थूका तुम पर,पत्थर मारे,
धृष्ट हुए बेरहमों ने।
फिर भी अपने धर्म को तुमने ,
दिया सदा अंजाम।

हे कोरोना वीरों,
तुम्हें शत शत प्रणाम।।

स्नेही जनों को पीछे छोड़
तुम अपना कर्तव्य निभाते।
खाद्य अन्न कहीं कम न पड़े,
वाहन  दिन -रात चलाते।।
राष्ट्र की खातिर पीछे छोड़ा,
तुमने अपना धाम।

हे कोरोना वीरों,
तुम्हें शत शत प्रणाम।

विपदा ऎसी देश में आई,
हर मन है घबराया -सा।
उहापोह में बीत रहे दिन,
हर चेहरा मुरझाया -सा।।
ऐसे संकट काल में खबरें,
पहुँचाते तुम सुबह- शाम।

हे कोरोना वीरों,
तुम्हें शत शत प्रणाम।।


गुरुवार, 14 मई 2020

बोल चिड़िया



🐦🐦🐦🐦🐦🐦🐦🐦🐦🐦🐦

बोल चिड़िया,
अब बेधड़क बोल।
अब तेरी बारी आई है।
दिल के सारे जख्म खोल।

बोल चिड़िया,अब बेधड़क बोल।

तुझे पिंजरे में बंद करनेवाला 
अब बचा कौन है!!!!
तेरी स्वर लहरियों को रोकने वाला 
तो अब स्वयं ही मौन है!!

अब जी भरकर चहक।
सकल विश्व पर ,अब तेरा ही प्रभुत्व है...
जहाँ चाहे, वहाँ फुदक।।

मेरी भोली चिड़िया,तेरी चीत्कारों
का हिसाब इतना ज्यादा है 
कि प्रकृति अब अहमी मनुष्य को रक्तिम 
अश्रुओं का स्वाद चखाने पर आमादा है               
मन में अब कोई भय न रख,
तू निडर होकर बहक।
अब तू आज़ाद है ,
तुझे कैद करनेवाला बर्बाद है।।

हे चिड़िया, मुक्त कंठ से,  
प्रकृति का धन्यवाद कर।
अपने कलरव -किलोल से 
फिर मेरा जहाँ आबाद कर।।

नदिया, झरने, 
पहाड़ों ,झुरमुटों से निकल 
अब बस्तियों में भी बोल

मेरे कानों में फिर से 
अपना मधु रस घोल 
अब ख़ुश होकर बोल

चिड़िया ,अब खुश होकर बोल।

🐦🐦🐦🐦🐦🐦🐦🐦🐦🐦







रविवार, 10 मई 2020

तक़सीर...







*अना-परस्त हैं वो, और *ज़बत उन्हें आती नहीं
*फना हुए उनकी नादानियों पे हम, पर वो रस्में वफा निभाती नहीं ।1।

अदाएँ दिखाकर लूटना तो *शगल है उनका और
 हम लुट गए उन अदाओं पे, वो समझ पाती नहीं ।2।

क्यों अब तलक वो करती रही , *पैमाइश मेरी
हम कोई *शय नहीं ,क्या उसे समझ आती नहीं।3।

जाके कह दो कोई  ,कि मोहब्बत है उनसे
बिन उनके सर्द रातें भी ,अब सुहाती नहीं ।4।

क्या उनकी आरजू करना, *तकसीर है मेरी
क्यों हमें अपना जलवा, वो दिखाती नहीं।5।



उर्दू-हिंदी:

1:अना-An inflated feeling of pride in your superiority to others.,अहंकार
(अना परस्त-egoistic)
2:ज़बत-सहनशीलता
3:फ़ना- कुर्बान
4:शगल- शौक़
5: पैमाइश-नापने या मापने की क्रिया
6:शय- वस्तु, object
7:तकसीर-अपराध, गलती