सोमवार, 23 सितंबर 2019

प्रतीक्षा..

प्रतीक्षा 



एक सदी से प्रतीक्षा कर रही हूँ ! 

कुछ उधड़ी परतें सिल चुकी हूँ!
कुछ सिलनी बाकी है! 
कई- कई बार सिल चुकी हूँ पहले भी !
फिर भी दोबारा सिलना पड़ता है !
जहाँ से पहले शुरू किया था,
फिर वहीं लौटना पड़ता है!
भय है कि व‍ह कच्चा सूत, 
कहीं फ़िर से टूट न जाए !
पक्का सूत खरीदना है,
पर सामर्थ्य नहीं है!

सोचती हूँ, कि
कच्चे सूत से सिले, 
मेरी ख्वाहिशों के इस टुकड़े का 
कोई अच्छा पारखी, 
कोई क्रेता मिल जाए, 
तो मैं भी फुरसत से , 
जिंदगी से थोड़ी गुफ़्तगू कर लूँ! 
थोड़ी अपनी कह लूँ! 
थोड़ी उसकी सुन लूँ! 
वह भी तो दहलीज पर
खड़ी जाने कब से 
मेरी प्रतीक्षा ही कर रही है... 

रविवार, 22 सितंबर 2019

तेरे आंगन की गौरैया मैं .....

Daughters day

माँ, माना कि तेरे आंगन की 
गौरैया हूँ मैं... 
कभी इस डाल कभी उस डाल, 
फुदकती रहती हूँ यहाँ- वहाँ! 
विचरती रहती हूँ निर्भयता से, 
तेरी दहलीज के आर पार! 
जानती हूँ मैं 
तू डरती बहुत है कि 
एक दिन मैं उड़ जाऊँगी  
तुझसे दूर आसमान में! 
अपने नए आशियाने की
तलाश में! 
पर तू डर मत माँ 
मैं लौट कर आऊँगी
तेरे पास! 
अब मैं बंधनों में
और न रह पाऊँगी! 
समाज की रूढ़ियाँ,
विकृत मानसिकताएँ 
मेरे परों को अब 
नहीं बांध पाएँगी माँ.. "
जानती हूँ तुझे भी
बादलों से बतियाने
का मन है माँ 
चल आज तुझे भी 
अपने साथ 
नए आकाश में 
उड़ना सीखाऊँ मैं....
अब मैं निरीह नहीं माँ, 
मैं नए जमाने की बेटी हूँ ।

बेटी दिवस पर
सभी बेटियों को समर्पित 

शनिवार, 31 अगस्त 2019

मेरी सपनीली दुनिया





ऐ मेरे नन्हें से दिल, तू धड़कता है न
अच्छा लगता है मुझे तेरा स्पन्दन
चल ले चलती हूँ आज तुझे
एक नई दुनिया में
और कराती हूँ सैर
अपनी उसी प्यारी सी दुनिया की
जिसके कोमल एहसास
को जीने के लिए
मैंने और तुमने भी तो
न जाने कितनी
रातें जग - जगकर
करवटों में गुजार दी

इस बेरहम दुनिया
की निष्ठुरता,
धोखे, चालबाजी और
झूठ को सहते सहते
जिंदगी गुजार दी
चल ले चलती हूँ तुझे
उस जहाँ में जहाँ
दुख, संताप, झंझट और
रोजमर्रा की परेशानियां नहीं है
जहाँ प्रेम की
अविरल धारा लगातार बहती है
जो मुझे अपने आगोश में
लेने के लिए बेताब रहती है
चल कराऊँ तुझे आज उसी
मखमली दुनिया की सैर
जो शायद सब की तकदीर में नहीं है
क्योंकि वे सपने नहीं देखते
बस अपने वर्तमान से
लड़ते लड़ते चूर होकर
हमेशा के लिए नींद की
आगोश में चले जाते हैं.

गुरुवार, 29 अगस्त 2019

काश!!!

काश 
   काश 

दूर दूर तक
फैली सघन 
नीरवता, 
निर्जनता, 
हड्डियाँ पिघलाती 
जलाती धूप. 
सूखता कंठ, 
मृतप्राय 
शिथिल तन से 
चूता शोणित स्वेद 
अट्टहास करते, 
करैत से मरूस्थल 
की भयावहता सबकुछ 
निगल लेने को आतुर. 
परिलक्षित होती तब 
मृगमरीचिका,
जिसकी स्पृहा में 
निर्निमेष 
कुछ खोजता
लालायित मन. 
अभिप्रेत लक्ष्य 
जो ज्यों ज्यों होता
निकट दृश्यमान 
त्यों त्यों 
रहता है शेष, 
सिकत रेत. 
और शेष 
होता है, 
तो एक 
'काश '
और कभी न 
मिटने वाली 
जन्म जन्मांतर 
की मलिन प्यास. 

शनिवार, 17 अगस्त 2019

दर्द

पीड़ा
दर्द 



दर्द कहाँ सुंदर होता है

दर्द को भला कभी कोई अच्छा कहता है
दर्द सालता है 
दर्द कचोटता है, चुभता है
इसका रूप भयावह है

फिर दर्द को क्यों किसी को दिखाना

इसे छुपाओ तकिये में, गिलाफों में, 
किसी काली अँधेरी कोठरी में 
या बंद कर दो दराजों में 
ताले चाबी से जकड़ दो 
कि कहीं किसी  
अपने को दिख ना जाए
अन्यथा यह चिपक जाएगा उसे भी 
जो तुम्हें प्रिय हैं, बहुत प्रिय.. 

दर्द को छुपा दीजिए उसी तरह

जिस तरह घर में अतिथियों के आने से पहले छुपाए जाते हैं सामान 
अलमारियों के पीछे, कुछ खाट के नीचे, कि सब कुछ साफ़ सुथरा दिखना चाहिए
बिलकुल बेदाग.......
आडंबर का  पूरा आवरण ओढ़ लीजिए,  पहन लीजिए एक मुखौटा .....
कि यह दर्द बेशर्म है बड़ा 
उस नादान बच्चे की तरह...
जो हमारे सारे राज़ 
खोल देता है आगन्तुकों के समक्ष ...
और उसे भान भी नहीं होता 
दबा दीजिए उसे रसातल में, पाताल में या फेंक दीजिए उसे आकाश गंगा में ..
कि कहीं ये रूसवा न कर दे हमें
हमेशा- हमेशा के लिए...