प्रतीक्षा |
एक सदी से प्रतीक्षा कर रही हूँ !
कुछ उधड़ी परतें सिल चुकी हूँ!
कुछ सिलनी बाकी है!
कई- कई बार सिल चुकी हूँ पहले भी !
फिर भी दोबारा सिलना पड़ता है !
जहाँ से पहले शुरू किया था,
फिर वहीं लौटना पड़ता है!
भय है कि वह कच्चा सूत,
कहीं फ़िर से टूट न जाए !
पक्का सूत खरीदना है,
पर सामर्थ्य नहीं है!
सोचती हूँ, कि
कच्चे सूत से सिले,
मेरी ख्वाहिशों के इस टुकड़े का
कोई अच्छा पारखी,
कोई क्रेता मिल जाए,
तो मैं भी फुरसत से ,
जिंदगी से थोड़ी गुफ़्तगू कर लूँ!
थोड़ी अपनी कह लूँ!
थोड़ी उसकी सुन लूँ!
वह भी तो दहलीज पर
खड़ी जाने कब से
मेरी प्रतीक्षा ही कर रही है...
जिंदगी कू कशमकश व्यक्त करती बहुत ही सुंदर रचना, सुधा दी।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद ज्योति जी🙏🙏🙏
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 24 सितंबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंएक गीत याद आ गया -
जवाब देंहटाएंदिल ढूँढ़ता है, फिर वही फुर्सत के रात दिन....
बहुत बहुत धन्यवाद मीना जी🙏🙏🙏
हटाएंकुछ उधड़ी परतें सिल चुकी हूँ!
जवाब देंहटाएंकुछ सिलनी बाकी है!
कई- कई बार सिल चुकी हूँ पहले भी !
फिर भी दोबारा सिलना पड़ता है !
जहाँ से पहले शुरू किया था,
फिर वहीं लौटना पड़ता है!
भय है कि वह कच्चा सूत,
कहीं फ़िर से टूट न जाए !
पक्का सूत खरीदना है,
पर सामर्थ्य नहीं है!.... बहुत सुन्दर सृजन
सादर
बहुत बहुत धन्यवाद अनिता जी🙏🙏🙏
हटाएंसुन्दर सृजन। ज़िन्दगी इसी कशमकश का नाम है।
जवाब देंहटाएंप्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत धन्यवाद विकास जी🙏🙏🙏
हटाएंकई परतों को खोल दिया ....
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद अमृता जी🙏🙏🙏
हटाएंवाह बहुत खूब सुधा जी ।
जवाब देंहटाएंयूंही कशमकश में रफ्ता-रफ्ता जिंदगी बीत रही
और ना मिला आज तक एहसासों का पहरेदार।
क्या बात है दी ,इन खूबसूरत पंक्तियों ने तोरचना को उत्कर्ष दे दिया।बहुत बहुत आभार आपका
हटाएंजिस चरखे पर सूत काता होगा.
जवाब देंहटाएंवो भी तो बाट जोहता होगा.
वाह सुधाजी.
जी नूपुर जी बिलकुल, आपकी प्रतिक्रिया ने रचना की गहराई को मायने दे दिया।हृदयतल से आभार आपका
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