मंगलवार, 26 दिसंबर 2023

तड़पे ओजहीन हो..

 नवगीत:2

तड़पे ओजहीन हो वसुधा 


तड़पे ओजहीन हो वसुधा 

रसमय स्नेह सुधा बरसाना 

निर्दयता हृदय में धरकर 

बिसरे सुरभित कुसुम खिलाना


1

छालों से आहत अंतस है

उलझन में है कटता जीवन

सुखद पवन आँधी बन आई

उजड़ गए हैं मन के उपवन

दुष्चक्रों की अग्नि लटा में 

छोड़ो अब हमको झुलसाना

तड़पे ओजहीन हो वसुधा......


2


अँधियारे ने पाँव पसारे

आशा की नहीं दिखे उजास

पतझड़ का चहुँ ओर राज है

लुप्त है क्यों मेरा आकाश

काल चक्र निर्धारित करके

भूल चुके क्या याद दिलाना

तड़पे ओजहीन हो वसुधा......


3

मानवता विधि पर रोती है

अब उसका अस्तित्व बचा ना

लोभ मोह माया में फँसकर

मक्कारी का गाये गाना

क्यों ये खेल रचाया विधना

सद्कर्मों की राह सुझाना

तड़पे ओजहीन हो वसुधा......


सुधा सिंह 'व्याघ्र'




श्री राम स्तुति :कतिपय दोहे


अवधपुरी हर्षित हुई, जन्में बालक राम ।

प्रमुदित सब नर नारियाँ,छवि देखी अभिराम।। 


 दो अक्षर का नाम है, रघुकुल नंदन राम

सुमिरन कर ले रे मना, प्रभु आएँगे काम। 


दसकंधर को तार के, पहुँचाया निज धाम 

शुभकारी श्री राम को, भज लो आठों याम



 


देर ना करना पिया जी... गीत


देर ना करना पिया जी... गीत

देर ना करना पिया जी
आस की फिर लौ जली है ।
चाँदनी भी खिलखिलाई
बाग में चटकी कली है ।।

 तान छेड़े मन मुरलिया,
रात दिन तुमको पुकारे।
दूरी अब जाए सही न
तू कहाँ है ओ पिया रे।। 1।।

उर्मियाँ हिय की उछलती
जलधि से मिलने चली है।
देर ना करना पिया जी
आस की फिर लौ जली है ।।

  बिन तुम्हारे जगत सूना
हर तरफ अंधियारा है।
चांदनी  रातें न भाएँ
लगती ज्यों अंगारा है।।

दर्श को आँखें तरसती
विरह में पल पल जली है।
देर ना करना पिया जी
आस की फिर लौ जली है ।।2।।

हृदय में मूरत तुम्हारी
है पिया मैंने बसाई।
तुम्हीं हो हर ओर दिखते
तुम्हीं हो देते सुनाई।।

राह कब तक और देखूँ
साँस की संझा ढली है।
देर ना करना पिया जी
आस की फिर लौ जली है ।।3।।

रविवार, 18 सितंबर 2022

कहते थे पापा

कहते थे पापा,
" बेटी! तुम सबसे अलग हो! 
सब्र जितना है तुममें
किसी और में कहाँ! 
तुम सीता - सा सब्र रखती हो!! "

 बोल ये पिता के 
थे अपनी लाडली के लिए......... 
 या भविष्य की कोख में पल रहे
 अपनी बेटी के सीता बनने की
 वेदना से हुए पूर्व साक्षात्कार के थे।..... 

  क्या जाने व‍ह मासूम 
कि व‍ह सीता बनने की राह पर ही थी 
 पिता के ये मधुर शब्द भी तो 
पुरुष वादी सत्ता के ही परिचायक थे. 
किन्तु वे पिता थे
जो कभी गलत नहीं हो सकते।

जाने अनजाने 
पापा के कहे शब्दों को ही
 पत्थर की लकीर 
समझने वाली लड़की 
 सीता ही तो बनती है।
 पर सीता बनना आसान नहीं होता। 
 उसके भाग्य में वनवास जरूरी होता है। 
धोबी के तानों के लिए 
और रामराज्य स्थापना के लिए 
 सीता सा सब्र  जरूरी होता है।
 नियति को सीता का सुख कहाँ भाता है 
व‍ह हर सीता के भाग्य में 
केवल सब्र लिखती है।
 दुर्भाग्य लिखती है।
 वेदना लिखती है। 
 







गुरुवार, 6 जनवरी 2022

दीप मन का सदा जगमगाता रहे– गीत


दीप मन का सदा जगमगाता रहे
डर करोना का दिल से भी जाता रहे

 रौशनी की जगह ,वो तिमिर दे गया
मन की आशाएँ ,इच्छाएं वो ले गया
अब हुआ है  सबेरा, जगो साथियों
गीत नव हर्ष का, दिल ये गाता रहे।

दीप मन का सदा जगमगाता रहे
डर करोना का दिल से भी जाता रहे

आया दुख का समय भी निकल जाएगा
हार पौरुष से तेरे वो पछताएगा
छोड़ दो डर को साथी, बढ़ो हर कदम
खौफ का मन से कोई न नाता रहे।।

दीप मन का सदा जगमगाता रहे
डर करोना का दिल से भी जाता रहे

फिसला है वक्त हाथों से माना मगर
कांटों से है भरी माना अपनी डगर
अपने विश्वास को डगमगाने न दो
यूं  हंसों जग चमन खिलखिलाता रहे।

दीप मन का सदा जगमगाता रहे
डर करोना का दिल से भी जाता रहे

आंसुओं से भरी माना हर शाम थी
हर खुशी तेरी कोविड के ही नाम थी
लड़ बुरे वक्त से तू खड़ा है हुआ
जीत हर बाजी तू मुस्कुराता रहे।

दीप मन का सदा जगमगाता रहे
डर करोना का दिल से भी जाता रहे।

सुधा सिंह ‘व्याघ्र’💗