बुधवार, 3 जून 2020

पीढ़ी अंतराल


 मात्रा भार:(10,14)



पीढ़ी अंतराल,बड़ा मचाता है बवाल 
रोते हैं बुजुर्ग,उठा घर में है भूचाल।।

पीढ़ी नव कहती, नया आया है जमाना।
इनको तो बस है, हमपे हुक्म ही चलाना।
समझे नव पीढ़ी,  उन्हें जी का जंजाल।
पीढ़ी अंतराल,बड़ा मचाता है बवाल।।

मेरी ना सुनता,  नहीं बैठे मेरे पास।
सिसके हैं बुजुर्ग, हम न आएँ इनको रास।।
करें बस  धृष्टता , धरें अंतस नहीं मलाल।
पीढ़ी अंतराल,बड़ा मचाता है बवाल।।

नव और पुराना, ये टकराव घटाना है।
समझें दूजे को, मन के भेद मिटाना है।।
होंगे सब प्रसन्न, घर में होगा फिर धमाल।
पीढ़ी अंतराल,बड़ा मचाता है बवाल।।

सुधा सिंह 'व्याघ्र'

सोमवार, 1 जून 2020

हम सेवी.. तुम स्वामी

🌷  गीतिका 🌷
        🌺    देवी छंद   🌺   **********************
               मापनी- 112  2

हम सेवी। 
तुम स्वामी ।।

मुख तेरा ।
अभिरामी।।

पद लागूँ।
दिक- स्वामी।

हम दंभी।
खल कामी।।

अपना लो।
भर हामी।।

चित मेरा।
*क्षणरामी*।।

हँसते हैं।
प्रति गामी।।

कर नाना।
बदनामी।।

बन जाऊँ।
पथ गामी।।

सुधा सिंह 'व्याघ्र'


क्षणरामी- कपोत, कबूतर 




शुक्रवार, 29 मई 2020

शिव शंकर ,हे औघड़दानी (भजन)

भजन (16,14)


शिव शंकर ,हे औघड़दानी
बेड़ा पार करो मेरा।
भव अम्बुधि से, पार है जाना, 
अब उद्धार करो मेरा।। 

काम, क्रोध, व लोभ में जकड़ा, 
मैं   मूरख  , अज्ञानी हूँ ।।
स्वारथ का पुतला हूँ भगवन
मैं पामर अभिमानी हूं।।

भान नहीं है, सही गलत का,
करता  मैं, तेरा मेरा।
शिव शंकर ,हे औघड़दानी
बेड़ा पार करो मेरा।।

माया के चक्कर में उलझा 
मैंने कइयों पाप किये ।
लोगों पर नित दोष मढ़ा अरु 
कितने ही आलाप किये ।।

जनम मरण के छूटे बंधन 
मिट जाए शिव अंधेरा।
शिव शंकर ,हे औघड़दानी
बेड़ा पार करो मेरा।।

 मैं याचक तेरे द्वारे का 
भोले संकट दूर करो ।
क्षमा करो गलती मेरी शिव 
अवगुण मेरे चित न धरो ।।

रहना चाहूँ शरण तुम्हारी 
रुद्र बना लो तुम चेरा।
शिव शंकर ,हे औघड़दानी
बेड़ा पार करो मेरा।।

दुष्टों से पीड़ित यह धरती  
करती भोले त्राहिमाम ।। 
व्यथित हृदय को उसके समझो 
प्रभु लेती तुम्हारा नाम ।।

हे सोमेश्वर ,हे डमरूधर  
कष्टों ने आकर घेरा ।
शिव शंकर ,हे औघड़दानी
बेड़ा पार करो मेरा।।

गुरुवार, 28 मई 2020

कोरोना-

 माहिया छंद:(टप्पे 12,10,12)

कोरोना आया है
साथी सुन मेरे
अंतस घबराया है 

घबराना मत साथी
आँधी आने पर
कब डरती है बाती

ये हलकी पवन नहीं 
देख मरीजों को 
जाती अब आस रही

मत आस कभी खोना
सूरज निकलेगा
फिर काहे का रोना

बदली सी छायी है
देने दंड हमें 
कुदरत गुस्साई है

जीवन इक मेला है
दुःख छट जाएँगे
कुछ दिन का खेला है ।



बुधवार, 27 मई 2020

बीत गई पतझड़ की घड़ियाँ

नवगीत(16,14)



बीत गई पतझड़ की घड़ियाँ 
बहार ऋतु में आएगी 
पेड़ों की मुरझाई शाखें 
अब खिल खिल मुस्काएँगी 

नवकिसलय अब तमस कोण से  
अँगड़ाई जब जब लेगा
अमराई के आलिंगन में 
नवजीवन तब खेलेगा।

कोकिल भी पंचम स्वर में फिर
अपना राग सुनाएगी 
पेड़ों की मुरझाई शाखें 
अब खिल खिल मुस्काएँगी


सतगुण हो संचारित मन में 
दीप जले फिर आशा का 
तमस आँधियाँ शोर करें ना 
रोपण हो अभिलाषा का 

पुरवाई लहरा लहराकर 
गालों को छू जाएगी 
पेड़ों की मुरझाई शाखें 
अब खिल खिल मुस्काएँगी


तेरा दुख जब मेरा होगा 
मेरा दुख हो जब तेरा
जीवन में समरसता होगी 
होगा फिर सुखद सवेरा 

हरे भरे अँचरा को ओढ़े
वसुधा भी लहराएगी 
पेड़ों की मुरझाई शाखें 
अब खिल खिल मुस्काएँगी 

सुधा सिंह 'व्याघ्र'