सोमवार, 25 मई 2020

समय की रेत फ़िसलती हुई,



समय की रेत फ़िसलती हुई,
उम्र मेरी ये ढलती हुई,
करती है प्रश्न खड़े कई।

क्या वक्त है कि मुड़के पीछे देखें,
क्या वक्त है कि कुछ नया सीखें।
सीखा जो भी अब तलक,
कर उसको ही और बेहतर भई।
समय की रेत...

कब कद्र की मेरी तूने ,
मैंने चाहा तू मेरी बात सुने,
मन के भीतर कुछ खास बुने।
तू आया धरा पे मकसद से,
समझ निरा गलत है क्या,
और क्या है एकदम सही।
समय की रेत....

तेरे हिस्से में चंद बातें हैं।
और कुछ शेष मुलाकातें हैं।
समेटने कुछ बही खाते हैं।
अपनी रफ़्तार को बढ़ा ले तू,
है जो भी शेष उसे निबटा ले तू,
यूँ समझ के जीवन की साँझ भई।
समय की रेत....

रविवार, 24 मई 2020

क्या छुप पाओगे तुम...




छुप जाओ, हर किसी से तुम
पर क्या... स्वयं से छुप पाओगे तुम
वो गलतियाँ , जो की थी
तुमने जानबूझकर  ...
रह -रहकर अँधेरे कोणों से
अट्टहास करती जब
तुम्हारे समक्ष आयेंगी...
तुम्हारे हृदय को कचोटती
काले साये की तरह तुम्हें डराएंगी
कहो भाग कर तब कहाँ जाओगे तुम

एक अरसे से जिस आत्मा को 
अपनी निम्न सोच से 
अनवरत बिगाड़ते रहे थे
वह विद्रूपता लिए  
आईने के सामने 
किस तरह मुस्कुराओगे तुम
अपनी अंतर्वेदनाओं को कहीं और
क्या गिरवी रख पाओगे तुम


अनंत ब्रह्मांड में तैरते
तुम्हारे कहे शब्द जब अपना
हिसाब माँगेगे तब कौन-सा बही खाता दिखाओगे
क्या अपने शब्द से मुकर पाओगे तुम
कहो क्या स्वयं से छुप पाओगे तुम.....

मंगलवार, 19 मई 2020

अंतर के पट खोल...



नवगीत: 

अंतर के पट खोल (16 ,11) 

       
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अंतर के पट खोल तभी तो
                   मन होवे उजियार।
मानव योनि मिली है हमको 
                इसे न कर बेकार  ।।

अंतस में हो अँधियारा जब, 
             दिखता सबकुछ स्याह ।
मन अधीर हो अकुलाए अरु ,
                   दिखे नहीं तब राह।।

दुर्गम जब भी लगे मार्ग तब ,
                       शत्रु लगे संसार ।
अंतर के पट खोल तभी तो ,
                     मन होवे उजियार। ।

जीवन में संघर्ष भरा है,
                     इसका ना पर्याय ।
उद्यम ही कुंजी है इसकी ,
                    दूजा नहीं उपाय।।

घड़ी परीक्षण की जब आए ,
                      मान न मनवा हार।
अंतर के पट खोल तभी तो ,
                      मन होवे उजियार।।

अपनों का जब साथ मिले तो,
                        जीवन हो रंगीन।
दुख की बदरी भी छँट जाए ,
                     समाँ न हो गमगीन।।

निज हित के भावों को त्यागें,
                   कर लें कुछ उपकार।
अंतर के पट खोल तभी तो ,
                      मन होवे उजियार।।

सुधा सिंह 'व्याघ्र✍️





सोमवार, 18 मई 2020

सामाजिक संचार

 गीत :(16,14)


सामाजिक संचार तंत्र ने ,
सबको अपना दास किया ।
ज्ञानवान मानव ने तब से, 
खुद को कारावास दिया ।।

कक्ष रोते, रोती रसोई ,  
स्वच्छता का भान नहीं ।
उनको बनना टिक -टॉक  स्टार ,
घर में बिलकुल ध्यान नहीं ।। 
इंस्टाग्राम सजाने खातिर, 
पत्नी ने अवकाश लिया।

मुखपोथी, टिक टॉक, लाइकी ,
अब तो घर में राज करें  ।
खिंचवाकर सुंदर तस्वीर , 
हम तो खुद पर नाज करें।। 
कम लाइक जब मिले देखकर, 
धक -धक , धक -धक करे जिया ।

स्वास्थ्य की अब नहीं है चिन्ता ,
तन को देखो स्थूल भए।
आभासी दुनिया से जुड़कर, 
रिश्ते -नाते भूल गए ।।
गोदी में संतान की जगह, 
लैपटॉप ने स्थान लिया ।।

सुधा सिंह 'व्याघ्र'

शनिवार, 16 मई 2020

हे कोरोना वीरों...


हे कोरोना वीरों, 
तुम्हें शत- शत प्रणाम ।
दाँव लगाकर प्राणों को , 
करते हो तुम काम।।

कड़ी धूप में स्वेद से तर ,
वर्दी का तुम मान हो रखते।
घुप्प अँधेरी रातों में भी  ,
अपने फ़र्ज का भान हो रखते।।
तुम रखते हो अनुशासन का,
खयाल आठों याम।

हे कोरोना वीरों,
तुम्हें शत शत प्रणाम।।

अस्पताल के खुले कक्ष में,
शौच किया बेशरमों ने।।
थूका तुम पर,पत्थर मारे,
धृष्ट हुए बेरहमों ने।
फिर भी अपने धर्म को तुमने ,
दिया सदा अंजाम।

हे कोरोना वीरों,
तुम्हें शत शत प्रणाम।।

स्नेही जनों को पीछे छोड़
तुम अपना कर्तव्य निभाते।
खाद्य अन्न कहीं कम न पड़े,
वाहन  दिन -रात चलाते।।
राष्ट्र की खातिर पीछे छोड़ा,
तुमने अपना धाम।

हे कोरोना वीरों,
तुम्हें शत शत प्रणाम।

विपदा ऎसी देश में आई,
हर मन है घबराया -सा।
उहापोह में बीत रहे दिन,
हर चेहरा मुरझाया -सा।।
ऐसे संकट काल में खबरें,
पहुँचाते तुम सुबह- शाम।

हे कोरोना वीरों,
तुम्हें शत शत प्रणाम।।