IBlogger interview
गुरुवार, 26 मार्च 2020
सोमवार, 23 मार्च 2020
कुछ जीवनोपयोगी दोहे - 5
25:कर्म :
माफी गलती की मिले, जुर्म क्षमा कब होय!
पीछे पछताना पड़े,पाप बीज जब बोय!!
26:सद्भावना :
आदर सबका कीजिए,रखिए मन सद्भाव!
परिसर में पसरे खुशी,तन मन लगे न घाव!!
27:खुशी:
मारा - मारा मृग फिरे, कस्तूरी की खोज!
मन अन्तर खुशियाँ छिपी,ढूँढ न बाहर रोज!!
28: जीवन:
राहें काँटों से भरी, जीवन की यह रीत।
पंथ बीच रुकना नहीं, मत होना भयभीत।।
29: नमस्ते
हाथ जोड़ कर कीजिए,सबका ही सम्मान।
व्याधि से भी दूर रहें , बढ़े जगत में मान।।
30: स्वच्छता
सुंदर हो वातावरण,किंचित हो न अशुद्ध।
साफ़ सफ़ाई कीजिए,बनिए सभी प्रबुद्ध।।
रविवार, 22 मार्च 2020
कोविड-2019 - कुंडलियाँ
1-
इक व्याधि ऐसी पसरी,कोविड जिसका नाम
त्राहि त्राहि जनता करे, हमें बचाओ राम ।।
हमें बचाओ राम, करो विषाणु से रक्षण।
ज्वर,ज़ुकाम अरु दस्त, खास ये इसके लक्षण
साबुन से धो हाथ, खाइए भोजन सात्विक।
रहिए सबसे दूर, फैली ऐसी व्याधि इक ।।
2-
बातें कोविड की सुनो , लाया है पैगाम ।
स्वच्छता की दे शिक्षा ,कहता करो प्रणाम।
कहता करो प्रणाम,जियो अनुशासित जीवन
सुखमय रहे समाज, बने वसुधा वह उपवन
सात्विक हो आहार, बीते दिन श्रेष्ठ रातें ।
त्यागें पशुता आज, सुने कोविड की बातें।
बुधवार, 18 मार्च 2020
कहमुकरियाँ - 2
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Jhumka |
7: अंजन
श्याम वर्ण मुझे खूब लुभाता।आँखों में मेरी बस जाता।।
हम दोनों का प्यारा बंधन।
क्या सखि साजन?
ना सखि अंजन....
8: गाँव
मुझको अपने पास बुलाता।ना जाऊँ तो जी अकुलाता।।
देता मुझे वो सुख की छाँव।
क्या सखि साजन?
नहीं सखि गाँव...
9: समंदर
अस्थिर कभी, कभी ठहरा है।उसका हृदय बड़ा गहरा है।।
नमक खूब है उसके अंदर।
क्या सखि साजन?
नहीं समंदर...
10:अखबार
बात ज्ञान की वह बतलाता।खबरें रोज नई वह लाता।।
सबकी पोल खोलता यार।
क्या सखि साजन?
नहीं अखबार...
11: मोबाइल
बिन उसके मैं चैन न पाऊँ।नहीं मिले तो मैं घबराऊँ।।
देखूँ उसे तो आए स्माइल।
क्या सखि साजन?
नहीं मोबाइल...
12:झुमका
गालों को वह जब तब चूमे।झूमूँ मैं तो वह भी झूमे।।
चाहूँ जैसे लगाए ठुमका।
क्या सखि साजन?
ना सखि झुमका..
सुधा सिंह 'व्याघ्र'
सोमवार, 16 मार्च 2020
तटस्थ तुम...
देखो...
जमाने की नज़रों में
सब कुछ कितना
सुंदर प्रतीत होता है न
मांग में भरा
ये खूबसूरत सिंदूर,
ये मंगलसूत्र
सुहाग की चूडियाँ
ये पाजेब, बिछिया, ये नथिया...
और....
स्वयं में सिमटी हुई मैं...
जो बटोरती है कीरचें अहर्निश
अपनी तन्हाई के
और तटस्थ तुम...
तुम... न जाने कब तय करोगे
अपने जीवन में
जगह मेरी..
क्यों मांग मेरी
बन गई है
वो दरिया
जिसके दोनों किनारे
एक ही दिशा में गमन कर रहे हैं
पर आजीवन
अभिसार की ख्वाहिश लिए
तोड़ देते हैं दम
और चिर काल तक
रह जाते हैं अकेले... अधूरे...
ये ख्वाहिश भी
एक तरफा ही है शायद कि
तुम्हारा और मेरा पथ एक है
पर मंज़िल जुदा...
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