आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (21-03-2021) को "फागुन की सौगात" (चर्चा अंक- 4012) पर भी होगी। -- सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। -- हार्दिक शुभकामनाओं के साथ- -- सादर...! डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' --
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है...... आप की इस रचना का लिंक भी...... 21/03/2021 रविवार को...... पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर..... शामिल किया गया है..... आप भी इस हलचल में. ..... सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक: https://www.halchalwith5links.blogspot.com धन्यवाद
आभारी हूं दी... यह हर उस औरत की व्यथा है जो चाहकर भी चीख नहीं सकती। भीतर ही घुट घुट जीने को मजबूर है। हमारे समाज की तथाकथित अल्पसंख्यक जाति की स्त्रियाँ जहाँ उनका अस्तित्व केवल पुरुषों की दासी या उनकी सेविका के रूप में है।हालाला/तीन तलाक.. अब इसके आगे क्या कहूँ...
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (21-03-2021) को "फागुन की सौगात" (चर्चा अंक- 4012) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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जय मां हाटेशवरी.......
जवाब देंहटाएंआप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
21/03/2021 रविवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
https://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद
वाह!सुधा जी ,सुंदर सृजन ।
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीया 🙏
हटाएंदारुण व्यथा को उकेरा है । गहन भाव
जवाब देंहटाएंआभारी हूं आदरणीया 🙏
हटाएंदुर्दांत।
जवाब देंहटाएंये कैसी व्यथा है बहना।
आभारी हूं दी... यह हर उस औरत की व्यथा है जो चाहकर भी चीख नहीं सकती। भीतर ही घुट घुट जीने को मजबूर है। हमारे समाज की तथाकथित अल्पसंख्यक जाति की स्त्रियाँ जहाँ उनका अस्तित्व केवल पुरुषों की दासी या उनकी सेविका के रूप में है।हालाला/तीन तलाक.. अब इसके आगे क्या कहूँ...
हटाएंदारुण... बन्धनों में जकड़ी स्त्री की भावनाएं दर्शाती कविता....
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