रविवार, 7 जून 2020

विषय :प्रेम बीज



विधा :मनहरण  घनाक्षरी 



प्रेम का प्रसार हो जी, सुखी संसार हो जी। 
स्नेह बीज रोपने हैं, हाथ तो बढ़ाइये। 1।

दुख दर्द सोख ले जो, वैमनस्य रोक ले जो। 
छाँव दे जो तप्तों को, बीज वो लगाइए। 2।

प्रेम का हो खाद पानी, प्रेम भरी मीठी बानी ।
श्रेष्ठ बीज धरती से, आप उपजाइये ।3।

जो भी हम बोएँगे जी, वही हम काटेंगे भी। 
सोच के विचार के ही, कदम बढ़ाइये। 4।

सुधा सिंह 'व्याघ्र' 


14 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. उत्साहवर्धन के लिए आभारी हूँ आदरणीय 🙏 🙏

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  2. नमस्ते,

    आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 09 जून 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!



    आपकी रचना की पंक्ति-

    "जो भी हम बोएँगे जी, वही हम काटेंगे भी..."

    हमारी प्रस्तुति का शीर्षक होगी।

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    1. अपनी रचना की पंक्ति को शीर्षक रूप में देखना किसी पुरस्कार से सम्मानित करने जैसा है. आपकी बहुत बहुत आभारी हूँ आ. 🙏

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  3. वाह!सखी ,बहुत सुंदर सृजन ।

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  4. चर्चा मंच में स्थान देने के लिए आप की आभारी हूँ मीना जी. सादर 🙏 🙏

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  5. बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय 🙏

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  6. जैसा अन्न वैसा मन ,जैसा पानी वैसी वाणी ,

    जैसा बीज वैसा फल।

    जो बोया सो पाया काटा।

    सुंदर सरल सहज बोध गम्य सन्देश पार्क रचना।
    veeruji05.blogspot.com

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  7. सुंदर भावों से सुसज्जित सुंदर घनाक्षरी सरस लय और सदा हुआ शिल्प।
    बहुत सुंदर।

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    1. आपकी टिप्पणी सदा आल्हादित करती है दीदी. बहुत बहुत शुक्रिया आपका 🙏

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