अमीर छंद
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विधान ~ 11,11
हे जग तारणहार ।
कर जोड़ूँ बारंबार।।
हम सबके भर्तार।
कर दो बेड़ा पार।।
बढ़ा है दुराचार।
उच्छृंखल व्यवहार।।
नफरत का बाजार।
जिसका न पारावर।।
कोरोना की मार।
ठप्प पड़ा व्यापार।।
घर ही कारागार।
हर कोई लाचार।।
दुख है अपरंपार।
जीना है दुश्वार।।
जग के पालनहार।
मग मैं रही निहार।।
युग युग से सरकार।
तुम सबके आधार।।
ले लो फिर अवतार।
सुंदर हो संसार।।
🙏🙏
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय 🙏 🙏
जवाब देंहटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार (08-06-2020) को 'कुछ किताबों के सफेद पन्नों पर' (चर्चा अंक-3733) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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-रवीन्द्र सिंह यादव
अवश्य आदरणीय.. अपनी रचना को चर्चा मंच पर देखना सदैव सुखद अनुभूति देता है. 🙏 🙏
हटाएंसुंदर रचना जय श्री कृष्ण
जवाब देंहटाएंजय श्री कृष्ण आदरणीय आपका आना आनंदायक है।नमन🙏
जवाब देंहटाएंवाह !बहुत ख़ूब आदरणीय दीदी .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद बहना
हटाएंवाह दी... बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार संजय जी
हटाएंभर्तार/भरतार यहाँ भरतार का क्या आशय है ?
जवाब देंहटाएंपालनहार
हटाएंउत्कृष्ट
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
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