वो जो
इतवार के
एक दिन का
आधिकारिक
अवकाश
मिलता है मुझे
कहो,
अपनी कहूँ या
फिर सुनूँ उनकी..
या फिर से
वही करूँ..
जो
सदा से करती आई हूँ -
घर के रोजमर्रा के काम
या
छः दिन के दफ़्तर
के कामकाज से
छुटकारा पा..
करूँ वो..
जो
अच्छा लगता है मुझे
बस, केवल एक दिन
पर
अगर मैं भी
अपना इतवार मनाऊँ,
तो क्या...
वे कहना छोड़ देंगे -
"जो औरतें बाहर काम करती हैं
वे घर भी तो संभालती हैं।
कुछ खास नहीं कर रही हो तुम । "
हाँ,
सभी औरतें
संभालती हैं
घर और बाहर दोनों
अपनी पूरी जिम्मेदारी के साथ।
इतवार पर अधिकार
केवल पुरुष का है
किन्तु पुरुष नहीं कर सकते
स्त्री से बराबरी
हाँ,
स्त्री और पुरुष की
कोई बराबरी नहीं
क्योंकि स्त्रियाँ वार देती हैं
अपने सारे इतवार
अपने सारे अधिकार
अपने परिवार पर
वही जो पुरुष नहीं कर सकता
क्योंकि स्त्री और पुरुष
का कोई मुकाबला नहीं है।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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होलीकोत्सव के साथ
अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस की भी बधाई हो।
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय शास्त्री जी 🙏
हटाएंबहुत सुन्दर रचना । शुभकामनाएँ ।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया पल्लवी मैम 🙏 🙏
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (09-03-2020) को महके है मन में फुहार! (चर्चा अंक 3635) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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होलीकोत्सव कीहार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय शास्त्री जी 🙏 🙏
हटाएंसही में कोई मुकाबला नहीं है।
जवाब देंहटाएंस्त्री ने पुरुष को अपने ऊपर क्रमबद्ध रूप में हावी होने दिया है।
"मुकाबला नहीं है" स्वीकार करते हैं ये बात लेकिन इस के लिए पुरुष विरोधी बन जाओ!!
ये बात किस हद्द तक उचित है हमे विचारना होगा।
आपके ब्लॉग तक मेरा पहली बार आना हुआ।
अच्छा लिखा हुआ पसन्द आया। कृपया आप भी आइयेगा मेरे ब्लॉग तक।
नई पोस्ट - कविता २
रोहितास जी अच्छा लगा आप हमारे ब्लॉग पर आए. आपका बहुत बहुत स्वागत है.
हटाएंमैं पुरुष विरोधी कदापि नहीं हूँ परंतु स्त्रियों की स्थिति किसी से छिपी भी नहीं है. जो स्त्रियां स्वयं को पुरुषों की बराबरी के होड़ में हैं उनके लिए भी इस रचना द्वारा यही संदेश देने का प्रयास किया है वे यदि ठान लें तो पुरूषों से सर्वथा बेहतर हैं. उम्मीद है आप मेरी बातों से सहमत होंगे
कई ब्लॉग की रचनाओं से होकर गुजरा तो वहां मुझे पुरुष विरोधी और तटस्थ भावना की बू आ रही थी।
हटाएंआप से सहमत हैं।
स्त्री और पुरुष की कोई बराबरी नहीं क्योंकि स्त्रियाँ वार देती हैं अपने सारे इतवार अपने सारे अधिकार अपने परिवार पर! बहुत सटिक अभिव्यक्ति सुधा दी।
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