आसमान है सबसे ऊँचा ,
फिर भी उसे धरा से प्यार।
धरती से मिलने की खातिर ,
करता है वह क्षितिज तैयार।।
कितना उन्नत, विशाल कितना,
लेकिन कोई दंभ नहीं है!
फिर भी सब नतमस्तक हो जाते,
इसमें कोई अचंभ नहीं है!
पहन कभी नीला परिधान,
रहता खड़ा है सीना तान!
रंग सुनहरा तब ये पहने,
जब् होती है शाम विहान।
एक समान प्यारे सब उसको,
किसी से कोई बैर नहीं है!
छात्र छाया है सबकी उसपर,
कोई भी तो गैर नहीं है!
कितने नखत गोद में उसकी,
जान न् कोई अब तक पाया,
जाने कितने राज़ छुपे हैं,
इसकी कोई थाह न् पाया।
सबको एक समान आँकता,
बैठके ऊपर सदा ताकता!
प्रयास कोई भरसक करता,
फिर भी उससे कुछ नहीं छुपता!
तारों से टिमटिम करवाता,
चंदा को है रात में लाता!
दूर भगाने अंधियारे को,
दिन में दिनकर को ले आता !
बादल उसकी बात मानते,
बोले जब वह तभी बरसते,
बिजली भी है कायल उसकी ,
जब वह कहता तभी कड़कती
सुधा सिंह 🦋
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