रविवार, 21 मई 2017

मुझे मेरा बचपन पुनः चाहिए!

मुझे मेरा बचपन पुनः चाहिए,
पाने फिर इनको कहाँ जाइये?

वो पेड़ो पर चढ़ना, गिलहरी पकड़ना,
अमिया की डाली पर झूले लगाना,
वो पेंगें मारके  बेफिकरी से झूलना,
वो मामा और मासी का मनुहार करना,
मेरे रूठ जाने पर मुझको मनाना,
पाने फिर इनको कहाँ जाइये?
मुझे मेरा बचपन पुनः चाहिए!

खिलौनों की खातिर वो रोना मचलना,
वो छुप्पन छुपाई, वो रस्सी कुदाई,
वो गुड़िया और गुड्डे की शादी रचाना,
साखियों के संग मिलके ऊधम मचाना,
वो कट्टी, वो बट्टी , वो रूठना मनाना,
वो परियों के किस्से, वो झूठी शिकायत,
पाने फिर इनको कहाँ जाइये?
मुझे मेरा बचपन पुनः चाहिए!

लगोरी का अड्डा, वो गिल्ली, वो डंडा,
वो भवरों का चक्कर, वो कंचे छुपाना,
वो खेतों में जाना, वो इमली चुराना,
वो मिट्टी सने तन लेके चुपके से आना,
न खाने की चिंता, न सोने की फिक्र,
पाने फिर इनको कहाँ जाइये?
मुझे मेरा बचपन पुनः चाहिए!

वो राजा, वो रानी, वो चोर और सिपाही,
वो बारिश के पानी में नावें चलाना,
वो रास्ते पर साइकिल के टायर दौड़ाना,
तितली की पूँछ में वो धागा लगाना,
वो विक्रम बेताल, चाचा चौधरी और साबू,
पाने फिर इनको कहाँ जाइये?
मुझे मेरा बचपन पुनः चाहिए!

वो शोखी, शरारत , वो भूली - बिसरी बातें,
वो अल्हड़पन, वो मासूमियत पुनः चाहिए!
हाँ..
मुझे मेरा बचपन पुनः चाहिए!

सुधा सिंह 🦋 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

पाठक की टिप्पणियाँ किसी भी रचनाकार के लिए पोषक तत्व के समान होती हैं ।अतः आपसे अनुरोध है कि अपनी बहुमूल्य टिप्पणियों द्वारा मेरा मार्गदर्शन करें।☝️👇