'भावों की गरिमा '
भावों की क्या बात करें
भावों की अपनी हस्ती है
भावो के रंग भी अगणित हैं
इससे ही दुनिया सजती है
मूल्यांकन भी इसका ...
व्यक्ति दर व्यक्ति होता है!
गैरों को भी प्रेम भरी
माला में ये तो पिरोता है
भाव महानुभावों के है तो
'वाह भाई वाह.. क्या बात' है
दीन, अकिंचन, मजदूर के हैं
तो उसकी क्या 'औकात' है!
माँ के भाव शिशु के लिए
ममता बन जाते हैं..
पति पत्नी में रोमांस जगाते हैं
शत्रु में बैर बढ़ाते हैं!
शाहजहाँ के भावों ने था,
ताजमहल को बनवाया!
अनारकली को अकबर ने,
दीवारों में था चुनवाया !
जिन रंगो से पोषित होते,
ये वही रँग दिखाते हैं!
खुशियों में आँखों से बहते,
दुख में कंठ रून्धाते हैं!
श्रद्धा से चरणों में गिरते
गर्व में शीश उठाते हैं!
मान में करते सीना चौड़ा
लज्जा में सिर को झुकाते हैं!
पत्थर जैसे कठोर है ये
कभी ओस की तरह पावन भी!
हिय में टीस उठे जब भी
नयनो से बरसता सावन हैं
रंग है इसके भाँति भाँति
व्यक्ति का निर्माता ये!
जैसा जिसने रंग चुन लिया
वैसी छवि बनाता ये!
तो..
दूजे के भावों को समझना
बहुत - बहुत जरूरी है!
यही बढ़ाए निकटता ,
और यही बढ़ाता दूरी है!
भावों की क्या बात करें..
भावों की अपनी हस्ती है!
भावो के रंग भी अगणित हैं..
इससे ही दुनिया सजती है!
सुधा सिंह 🦋
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