जाल बिछाता है और डालता है दाने
#शिकारी बनकर के जीवन , शिकार करता है।
कभी दुखों का प्रहार, कभी सुखों का उपहार
#मदारी बन उंगलियों पर नाच नचाता है।
मूस मांजर की क्रीड़ा में रंक होता राजा तो
एक क्षण में दाता अकिंचन #भिखारी हो जाता है।
पावों में डाल बंधन, हंटर से करके घायल
करके मनुज पर #सवारी,अपनी चाकरी कराता है।
कभी लाभ, कभी हानि,कभी नकद या #उधारी,
अच्छे बुरे सब कर्म छली जीवन ही कराता है।
सुधा सिंह ✍️
कोपरखैराने, नवी मुंबई