IBlogger interview
बुधवार, 2 मई 2018
जिन्दगी - 3
नही छोड़ती कोई कसर, जिन्दगी हमें आजमाने में
एक मजदूर ही तो हैं हम, जीवन के इस कारखाने में
गिर्द बांध दिया है इसने, इक ऐसा मोह बंधन
जकड़े हुए हैं सब, इसके तहखाने में
दुख देखकर हमारा, हो जाती है मुदित ये
सुख मिलता है इसे, हमें मरीचिका दिखाने में
जिद्दी है ये बड़ी ,ज्यों रूठी हो माशूका ,
बीत जाती है उम्र पूरी, अपना इसे बनाने में
कब साथ छोड़ दे ये, नहीं इसका जरा भरोसा
इस जैसा बेवफा भी, नहीं कोई जमाने में
रहती है सब पर हावी, चलती है इसकी मर्जी
सौगात उलझनों की, है इसके खजाने में
क्रूर शासक सदृश ,प्रतिपल परीक्षा लेती
रहती सदा ही व्यस्त, मकड़जाल बनाने में
सुधा सिंह 🦋 01.05.18
गुरुवार, 26 अप्रैल 2018
अस्तित्व है क्या....
अस्तित्व है क्या?
क्या रूप नया!
क्या जीवित रहना अस्तित्व है?
या कुछ पा लेना अस्तित्व है?
ये अस्तित्व है प्रश्नवाचक क्यों?
और सब है उसके याचक क्यों?
आख़िर
सत्ता... अधिकार...या प्रकृति...
वजूद... या फिर.. उपस्थिति ???
अजी कब तक और किसकी????
आए कितने ही, गए कितने,
पर अस्तित्व कहो टिके कितने!
जो जिए मात्र अपने लिए,
तो अस्तित्व अहो किसके लिए!
यदि सत्ता का एहसास है,
तो दंभ सदैव ही पास है!
अहसास है अधिकार का,
तो अस्तित्व है अहंकार का!
हो दया धर्म, मानवता हीन,
तो अस्तित्व हो गया सबसे दीन!
जो बात प्रेम से हो जाए,
वो लड़के कहाँ कोई पाए?
कर नेकी, दरिया में डाल!
फिर होगा उत्थान कमाल!
बस कर्म करें और धीर धरें ,
यूँ निज भीतर अस्तित्व गढ़े
छोड़कर सब दंभ, अभिमान!
करें निज प्रकृति का संधान!
केवल मानव हम बन जाएँ
तो अस्तित्व हमें मिल जाएगा
जीवन में अच्छे कर्म किए
तो भाग कहाँ फिर जाएगा
वह पीछे दौड़ लगाएगा
हाँ.. पीछे दौड़ लगाएगा
सुधा सिंह 🦋 26.04.8
उस घडी का इंतजार मुझे अब भी है- Amarujala
उस घडी का इंतजार मुझे अब भी है- Amarujala: चाहत तो ऊँची उड़ान भरने की थी।
पर पंखों में जान ही कहाँ थी!
उस कुकुर ने मेरे कोमल डैने
जो तोड़ दिए थे।
मेरी चाहतों
बुधवार, 25 अप्रैल 2018
ये कैसी उकूबत थी उनकी
ये कैसी उकूबत थी उनकी
ये कैसी उकूबत थी उनकी,
हमें चोटिल ज़रर कर गए
हमने लिखी इबारतें सदा उनके नाम की
बिन पढे ही उन्हें वो बेकदर कर गए
उनसे पूछे कोई उनकी बेवफ़ाई का अस्बाब
हम तो अपनी ही कफ़स में जीते जी मर गए
बह के आँखों से अश्कों ने लिखी तहरीर ऐसी
कि बज्म में जाने अनजाने ही हमें रुसवा कर गए
बनके मुन्तजीर राह उनकी हम तकते रहे
वो हमें अनदेखा कर बगल से यूँ ही गुजर गए
दर रोज वो बढ़ाते रहे रौनक-ए - महफिल
शाम-ओ-सुबह हमारी तो तीरगी में ठहर गये
हर साँस में हम करते रहे इबादत जिसकी
देखा एक नजर जब उन्होंने,हम तरकर उबर गए
सुधा सिंह 🦋
उकूबत= दंड, सजा,
ज़रर= घाव, क्षति, शोक, विनाश, बरबादी
अस्बाब= कारण, वजह, साधन
ये कैसी उकूबत थी उनकी,
हमें चोटिल ज़रर कर गए
हमने लिखी इबारतें सदा उनके नाम की
बिन पढे ही उन्हें वो बेकदर कर गए
उनसे पूछे कोई उनकी बेवफ़ाई का अस्बाब
हम तो अपनी ही कफ़स में जीते जी मर गए
बह के आँखों से अश्कों ने लिखी तहरीर ऐसी
कि बज्म में जाने अनजाने ही हमें रुसवा कर गए
बनके मुन्तजीर राह उनकी हम तकते रहे
वो हमें अनदेखा कर बगल से यूँ ही गुजर गए
दर रोज वो बढ़ाते रहे रौनक-ए - महफिल
शाम-ओ-सुबह हमारी तो तीरगी में ठहर गये
हर साँस में हम करते रहे इबादत जिसकी
देखा एक नजर जब उन्होंने,हम तरकर उबर गए
सुधा सिंह 🦋
उकूबत= दंड, सजा,
ज़रर= घाव, क्षति, शोक, विनाश, बरबादी
अस्बाब= कारण, वजह, साधन
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