अस्तित्व है क्या?
क्या रूप नया!
क्या जीवित रहना अस्तित्व है?
या कुछ पा लेना अस्तित्व है?
ये अस्तित्व है प्रश्नवाचक क्यों?
और सब है उसके याचक क्यों?
आख़िर
सत्ता... अधिकार...या प्रकृति...
वजूद... या फिर.. उपस्थिति ???
अजी कब तक और किसकी????
आए कितने ही, गए कितने,
पर अस्तित्व कहो टिके कितने!
जो जिए मात्र अपने लिए,
तो अस्तित्व अहो किसके लिए!
यदि सत्ता का एहसास है,
तो दंभ सदैव ही पास है!
अहसास है अधिकार का,
तो अस्तित्व है अहंकार का!
हो दया धर्म, मानवता हीन,
तो अस्तित्व हो गया सबसे दीन!
जो बात प्रेम से हो जाए,
वो लड़के कहाँ कोई पाए?
कर नेकी, दरिया में डाल!
फिर होगा उत्थान कमाल!
बस कर्म करें और धीर धरें ,
यूँ निज भीतर अस्तित्व गढ़े
छोड़कर सब दंभ, अभिमान!
करें निज प्रकृति का संधान!
केवल मानव हम बन जाएँ
तो अस्तित्व हमें मिल जाएगा
जीवन में अच्छे कर्म किए
तो भाग कहाँ फिर जाएगा
वह पीछे दौड़ लगाएगा
हाँ.. पीछे दौड़ लगाएगा
सुधा सिंह 🦋 26.04.8
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