IBlogger interview
गुरुवार, 26 अप्रैल 2018
उस घडी का इंतजार मुझे अब भी है- Amarujala
उस घडी का इंतजार मुझे अब भी है- Amarujala: चाहत तो ऊँची उड़ान भरने की थी।
पर पंखों में जान ही कहाँ थी!
उस कुकुर ने मेरे कोमल डैने
जो तोड़ दिए थे।
मेरी चाहतों
बुधवार, 25 अप्रैल 2018
ये कैसी उकूबत थी उनकी
ये कैसी उकूबत थी उनकी
ये कैसी उकूबत थी उनकी,
हमें चोटिल ज़रर कर गए
हमने लिखी इबारतें सदा उनके नाम की
बिन पढे ही उन्हें वो बेकदर कर गए
उनसे पूछे कोई उनकी बेवफ़ाई का अस्बाब
हम तो अपनी ही कफ़स में जीते जी मर गए
बह के आँखों से अश्कों ने लिखी तहरीर ऐसी
कि बज्म में जाने अनजाने ही हमें रुसवा कर गए
बनके मुन्तजीर राह उनकी हम तकते रहे
वो हमें अनदेखा कर बगल से यूँ ही गुजर गए
दर रोज वो बढ़ाते रहे रौनक-ए - महफिल
शाम-ओ-सुबह हमारी तो तीरगी में ठहर गये
हर साँस में हम करते रहे इबादत जिसकी
देखा एक नजर जब उन्होंने,हम तरकर उबर गए
सुधा सिंह 🦋
उकूबत= दंड, सजा,
ज़रर= घाव, क्षति, शोक, विनाश, बरबादी
अस्बाब= कारण, वजह, साधन
ये कैसी उकूबत थी उनकी,
हमें चोटिल ज़रर कर गए
हमने लिखी इबारतें सदा उनके नाम की
बिन पढे ही उन्हें वो बेकदर कर गए
उनसे पूछे कोई उनकी बेवफ़ाई का अस्बाब
हम तो अपनी ही कफ़स में जीते जी मर गए
बह के आँखों से अश्कों ने लिखी तहरीर ऐसी
कि बज्म में जाने अनजाने ही हमें रुसवा कर गए
बनके मुन्तजीर राह उनकी हम तकते रहे
वो हमें अनदेखा कर बगल से यूँ ही गुजर गए
दर रोज वो बढ़ाते रहे रौनक-ए - महफिल
शाम-ओ-सुबह हमारी तो तीरगी में ठहर गये
हर साँस में हम करते रहे इबादत जिसकी
देखा एक नजर जब उन्होंने,हम तरकर उबर गए
सुधा सिंह 🦋
उकूबत= दंड, सजा,
ज़रर= घाव, क्षति, शोक, विनाश, बरबादी
अस्बाब= कारण, वजह, साधन
मंगलवार, 24 अप्रैल 2018
मंगलवार, 17 अप्रैल 2018
यक्ष प्रश्न
यक्ष प्रश्न
जीवन की प्रत्यंचा पर चढा कर
प्रश्न रुपी एक तीर
छोड़ती हूँ प्रतिदिन ,
और बढ़ जाती हूँ एक कदम
आगे की ओर
सोचती हूँ कदाचित
इस पथ पर कोई वाजिब जवाब
जरूर मिल जायेगा।
पर न जाने किस शून्य में
विचरण करके एक नए प्रश्न के साथ
वह तीर मेरे सामने दोबारा
उपस्थित हो जाता है
एक यक्ष प्रश्न-सा..
जो भटक रहा है अपने युधिष्ठिर की तलाश में
और तलाश रहा है मुझमें ही
अपने उत्तरों को..
और मैं नकुल, सहदेव, भीम आदि की भाँति
खड़ी हूँ अचेत, निशब्द,
किंकर्तव्य विमूढ़,
सभी उत्तरों से अनभिज्ञ.
'यक्षप्रश्नों' की यह लड़ी
कड़ी दर कड़ी जुड़ती चली जा रही है.
कब होगा इसका अंत, अनजान हूँ
"कब बना पाऊँगी स्वयं को युधिष्ठिर"
यह भी अनुत्तरित है.
हर क्षण, यक्ष, एक नया प्रश्न शर,
छोड़ता है मेरे लिए.
पर प्रश्नों की इस लंबी कड़ी को
बींधना अब असंभव- सा
क्यों प्रतीत हो रहा है मुझे .
न जाने, मैं किस सरोवर का
जल ग्रहण कर रही हूँ
जो मेरे भीतर के युधिष्ठिर को
सुप्तावस्था में जाने की
आवश्यकता पड़ गई !
क्यों युधिष्ठिर ने भी
चारों पाण्डवों की भांति
गहन निद्रा का वरण कर लिया है!
कब करेगा वह अपनी
इस चिर निद्रा का परित्याग!
और करेगा भी कि नहीं!
कहीं यह प्रश्न भी
अनुत्तरित ही न रह जाए!
सुधा सिंह 🦋
शनिवार, 14 अप्रैल 2018
जरूरी है थोड़ा डर भी
जरूरी है थोड़ा डर भी
मर्यादित अरु सुघड़ भी.
इसी से चलती है जिंदगी,
और चलता है इंसान भी.
जो डर नही
तो मस्जिद नहीं ,मंदिर नहीं.
गुरुद्वारा नहीं और गिरिजाघर नहीं.
और खुदा की कदर भी नहीं.
और खुदा की कदर भी नहीं.
ना हो डर,
रिश्ते में खटास का,
रिश्ते में खटास का,
तो मुंह में मिठास भी नहीं.
डर न हो असफलता का,
तो हाथ में किताब भी नहीं.
डर नही जो गुरु का,
तो विद्या ज्ञान नहीं.
डर ना हो इज्जत का,
तो मर्यादा का भान नहीं
डर न हो कुछ खोने का,
तो कुछ पाने का जज्बा नहीं.
जो डर नहीं जमीन जायदाद का,
तो कोई अम्मा नहीं, कोई बब्बा नहीं.
डर नहीं तो, सभी नाते बड़े ही सस्ते हैं.
डर नहीं तो, सब अपने - अपने रस्ते हैं.
ये डर है, तो रिश्ते हैं.
ये डर है, तो प्यार की किश्तें हैं
तो जरूरी है थोड़ा डर भी.
मर्यादित अरु सुघड़ भी.
इसी से चलती है जिंदगी,
और चलता है इंसान भी.
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