जरूरी है थोड़ा डर भी
मर्यादित अरु सुघड़ भी.
इसी से चलती है जिंदगी,
और चलता है इंसान भी.
जो डर नही
तो मस्जिद नहीं ,मंदिर नहीं.
गुरुद्वारा नहीं और गिरिजाघर नहीं.
और खुदा की कदर भी नहीं.
और खुदा की कदर भी नहीं.
ना हो डर,
रिश्ते में खटास का,
रिश्ते में खटास का,
तो मुंह में मिठास भी नहीं.
डर न हो असफलता का,
तो हाथ में किताब भी नहीं.
डर नही जो गुरु का,
तो विद्या ज्ञान नहीं.
डर ना हो इज्जत का,
तो मर्यादा का भान नहीं
डर न हो कुछ खोने का,
तो कुछ पाने का जज्बा नहीं.
जो डर नहीं जमीन जायदाद का,
तो कोई अम्मा नहीं, कोई बब्बा नहीं.
डर नहीं तो, सभी नाते बड़े ही सस्ते हैं.
डर नहीं तो, सब अपने - अपने रस्ते हैं.
ये डर है, तो रिश्ते हैं.
ये डर है, तो प्यार की किश्तें हैं
तो जरूरी है थोड़ा डर भी.
मर्यादित अरु सुघड़ भी.
इसी से चलती है जिंदगी,
और चलता है इंसान भी.
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