कहानी है मेरे पड़ोसन की -
एक दिन वह मेरे पास आई
उसकी आंखें थी डबडबाई
उसे चिंतित देख जब रह न पाई
मैंने उससे पूछ ही डाला -
इस उदासी का क्या है कारण?
आख़िर ऐसी क्या है बात ?
कहो तो कुछ उपाय सोचे
जल्द से जल्द करें निवारण
कुछ सकुचाते बामुश्किल से
उसने आप बीती सुनाई -
बहनजी, मेरा बेटा करता है
हरदम अपनी ही मनमानी
नहीं सुनेगा बात मेरी
जैसे उसने मन मे ठानी
नहीं समझ आता मुझे
कहूँ कौन- कौनसी बात
चिपका रहता फोन से सदा,
दिन हो या रात
आज तो हद ही हो गई
जब मैंने उसका फोन लिया छीन
तो हो गया वह बहुत खिन्न
कहने लगा मुझसे-
आप अपने काम से काम रखो
आप जब घंटों लगी रहती हो फोन पे
अपनी सखियों के संग
तो क्या मैंने कभी डाला है
आपके रंग में भंग
आप कौनसा दादी की बात सुनती हो
जो मैं आपकी सुनू!
आपका बेटा हूँ
आपके नक्शे कदम पर हूँ!
आप उन्हें नहीं गिनती
तो मैं आपको क्यों गिनू?
अब भला आप ही बताइए- क्या मैं ऐसी हूँ!
सुनकर उसकी बातें मुझे हँसी आई
मैं मुस्कराई
वह थोड़ी चौंकी, थोड़ी सकपकाई
मुझ पर प्रश्नभरी नजरे गड़ाई
और दागा एक सवाल -
मेरे घर में मचा है बवाल
यहाँ मेरी जान जाती है
और आपको हँसी आती है
मैंने उसे उस दिन का वाकया याद दिलाया -
क्या वह दिन तुम्हें याद है
जब मैं , तुम और तुम्हारी सास
सिनेमाघर घर फ़िल्म देखने गए थे ¿
और हम तीनों एक साथ
अगल - बगल की सीट पर बैठे थे
तभी तुम्हें वहाँ अपनी दो सखियाँ नजर आईं
खुशी के मारे चेहरे पर तुम्हारे मुस्कान छाई
तुमने उन्हें अपने पास बुलाया
और उनकी सीट पर हमें बिठाया
इंटरवल में सखियों संग
सेल्फी का मजा खूब उठाया
कोक समोसा पॉपकॉर्न भी
जमकर तुमने खाया
भूल गई तब हम दोनों को
थे हम भी तो साथ तुम्हारे
माँ जी बोल नही कुछ भी पाई
बस मन मसोसकर रह गई
तब मैंने पढ़े थे उनके भाव
फ़िल्म देखी थी व्यंग्य भरे
पर अश्रु गिरे थे उसी ठाव
तब तुमने नहीं,
मैंने उन्हें संभाला था
भर भर आँसू गिरते थे पर
मुँह पर उनके ताला था
हाँ मैंने उन्हें संभाला था
सुन बात भरी वह लज्जा से
जमीन हिल गई पाँव तले
दौड लगाई उल्टे पांव
और मां जी के पैरों में पड़ी
कर बद्ध क्षमा मांगी उसने
वह मंजर बड़ा सुहाया था
ममतामयी दया की मूरत
माता ने गले लगाया था
सुधा सिंह 🦋