दफ़्न हूँ जहाँ
वहीं जी भी रही हूँ,
इन दीवारों के
आगे का जहां
बस उनके लिए है।
मृत हैं ये दीवारें
या मैं ही मृत हूँ
वो हिलती नहीं
और स्थावर मैं
जिसे रेंगना मना है।
दफ़्न हूँ जहाँ
वहीं जी भी रही हूँ,
इन दीवारों के
आगे का जहां
बस उनके लिए है।
मृत हैं ये दीवारें
या मैं ही मृत हूँ
वो हिलती नहीं
और स्थावर मैं
जिसे रेंगना मना है।
तुम कहाँ हो भद्र???
उस दिन मन निकालकर
कोरे काग़ज़ पर
बड़ी सुघड़ता से रख दिया था मैंने।
सोचा था किसी दृष्टि पड़ेगी तो
अवश्य ही मेरे मन की ओर
आकर्षित हो वह भद्र
उसे यथोपचार देकर
अपने स्नेह धर्म का
निर्वहन करेगा।
पल बीते, क्षण बीते,
बीती घड़ियाँ और साल।
मन बाट जोहता रहा किन्तु
भद्र के पद चिह्न भी लक्षित नहीं हुए ।
(भद्र यथा संभव काल्पनिक पात्र है।)
मन पर धूल की परत चढ़ती रही
और मन अब अत्यंत मलिन,
कठोर और कलुषित हो चुका है।
#@sudha singh
जी करता है बनकर तितली
उच्च गगन में उड़ जाऊँ
बादल को कालीन बना कर
सैर चांद की कर आऊँ
दूषित जग की हवा हुई है
विष ने पाँव पसारे हैं
अँधियारे की काली छाया
घर को सुबह बुहारे है
तमस रात्रि को सह न सकूँ अब
उजियारे से मिल आऊँ
बादल को कालीन बना कर
सैर चांद की कर आऊँ
अपने मग के अवरोधों को
ठोकर मार गिराऊँगी
शक्ति शालिनी दुर्गा हूँ मैं
चंडी भी बन जाऊँगी
इसकी उसकी बात सुनूँ ना
मस्ती में बहती जाऊँ
बादल को कालीन बना कर
सैर चांद की कर आऊँ
भूल जाते हो तुम कि
एक अर्से से तुम्हारा साथ
केवल मैंने दिया है
जब जब तुम उदास होते
मैं ही तुम्हारे पास होती
तुम अपने हर वायदे में असफ़ल रहे
और मैंने अपने हक की
शिकायतें कीं किन्तु
उन वायदों के पूरा होने का इंतज़ार भी किया
और आज भी इंतज़ार में ही हूँ
फिर भी तुम अक्सर
ये एहसास दिला ही देते हो
कि तुम्हारे लिए मैं उतनी महत्वपूर्ण नहीं
जितने वे हैं, जो तुम्हारे साथ कभी खड़े नहीं रहे
क्यों तुम ये भूल जाते हो कि
जीवन साथी जीवन भर
साथ निभाने के लिए होता है
खोखले वायदे करके
जीवन पर्यंत भरमाने के लिए नहीं.
फिर भी इंतज़ार करूँगी मैं, तब तक,
जब तक तुम्हारा चित्त
यह गवाही न देने लगे
कि तुमने मेरे जीवन में मेरे
साथी के रूप में प्रवेश किया है
और तुम्हें अपने कर्तव्यों का पालन
अब शुरू कर देना चाहिए
गीत :इस गगन से परे (10,12)
इस गगन से परे,
है मेरा एक गगन
झूमते ख्वाब हैं
नाचे चित्त हो मगन
1
अपनी पीड़ा को
खुद से परे कर दिया
दीप उम्मीद का
देहरी पर धर दिया
अब धधकती नहीं
मेरे चित्त में अगन ...इस गगन से...
2
प्यारी खुशियों से
वो जगमगाता सदा
चंदा तारों से
हरदम रहे जो लदा
नाचती कौमुदी
होता मन का रंजन .... इस गगन से...
3
हुआ उज्ज्वल धवल
मेरे मन का प्रकोष्ठ
गाल पर लालिमा
मुस्कुराते हैं ओष्ठ
हर्ष से झूमता
फिर से मेरा तन मन.... इस गगन से...