IBlogger interview
बुधवार, 1 अप्रैल 2020
ठहराव
जरूरी है ठहराव भी ..
ऐ दोस्त थोड़ा ठहर जाया करो..
सबसे इतनी नाराजगी क्यों है
मानव सेवा भी तो बंदगी है
मानवता में सिर झुकाया करो
केवल मंदिर मस्जिद ही न जाया करो
ऐ दोस्त...
माना कि चलना जरूरी है
फिर भागने की क्यों होड़ लगी है
संघर्षों का नाम ही जिंदगी है
जिन्दगी को झुठलाया न करो
ऐ दोस्त...
ये छिन कभी रुकते नहीं
जो अकड़ते हैं झुकते नहीं
जरूरी है हर मुद्रा अच्छी सेहत के लिए
कभी पीछे भी मुड़ जाया करो
ऐ दोस्त...
थोड़ा रुको, थोड़ा सम्भलो,
चैन की थोड़ी साँस भी ले लो
खूबसूरत है जिन्दगी, एहसास तो लेलो
यूँ मन ही मन बुदबुदाया न करो
ऐ दोस्त...
शुक्रवार, 27 मार्च 2020
हल ढूँढते हैं...
हल ढूँढते हैं :
आओ मिलजुल के हम कोई हल ढूँढते हैं।
चलो साथी कुछ अच्छे पल ढूँढते हैं ।
गिरवी हैं बड़े अर्से से ईमान जिनके मंडी में
हर बशर में आदमीयत वो आजकल ढूँढते हैं ।
जिस समंदर ने रगड़ा है घावों पर नमक
उसी समंदर में चलो मीठा जल ढूँढते हैं।
रंज - ओ - ग़म की न हों कोई परछाईयाँ
चलो साथी ख्वाबों का स्थल ढूँढते हैं।
बाजार नफ़रतों का बहुत गर्म है आजकल
कर सके उसे ठंडा वो नल ढूँढ़ते हैं।
उन नकाबपोशों ने मुझे लूटा है बहुत बार
जो न ओढ़े कोई नक़ाब वह शकल (शक्ल) ढूँढते हैं।
इन्तहा हो गई है अब मेरे सब्र की भी यारों
आज आओ उस सब्र का भी फल ढूँढते हैं।
आओ मिलजुल के हम कोई हल ढूँढते हैं।
चलो साथी कुछ अच्छे पल ढूँढते हैं ।
गिरवी हैं बड़े अर्से से ईमान जिनके मंडी में
हर बशर में आदमीयत वो आजकल ढूँढते हैं ।
जिस समंदर ने रगड़ा है घावों पर नमक
उसी समंदर में चलो मीठा जल ढूँढते हैं।
रंज - ओ - ग़म की न हों कोई परछाईयाँ
चलो साथी ख्वाबों का स्थल ढूँढते हैं।
बाजार नफ़रतों का बहुत गर्म है आजकल
कर सके उसे ठंडा वो नल ढूँढ़ते हैं।
उन नकाबपोशों ने मुझे लूटा है बहुत बार
जो न ओढ़े कोई नक़ाब वह शकल (शक्ल) ढूँढते हैं।
इन्तहा हो गई है अब मेरे सब्र की भी यारों
आज आओ उस सब्र का भी फल ढूँढते हैं।
गुरुवार, 26 मार्च 2020
सोमवार, 23 मार्च 2020
कुछ जीवनोपयोगी दोहे - 5
25:कर्म :
माफी गलती की मिले, जुर्म क्षमा कब होय!
पीछे पछताना पड़े,पाप बीज जब बोय!!
26:सद्भावना :
आदर सबका कीजिए,रखिए मन सद्भाव!
परिसर में पसरे खुशी,तन मन लगे न घाव!!
27:खुशी:
मारा - मारा मृग फिरे, कस्तूरी की खोज!
मन अन्तर खुशियाँ छिपी,ढूँढ न बाहर रोज!!
28: जीवन:
राहें काँटों से भरी, जीवन की यह रीत।
पंथ बीच रुकना नहीं, मत होना भयभीत।।
29: नमस्ते
हाथ जोड़ कर कीजिए,सबका ही सम्मान।
व्याधि से भी दूर रहें , बढ़े जगत में मान।।
30: स्वच्छता
सुंदर हो वातावरण,किंचित हो न अशुद्ध।
साफ़ सफ़ाई कीजिए,बनिए सभी प्रबुद्ध।।
सदस्यता लें
संदेश (Atom)