सोमवार, 28 मई 2018

Quote - लम्हें जिन्दगी के

माँ भारती



1:गरिमा गान
माँ भारती महान
हमारी शान

2:खूबसूरत
जननी जन्म भूमि
तेरी मूरत

3:सारे जहाँ में 
सदा झंडा लहरे
तेरी शान में 

4: आग भरी हो 
भारतीय रगों में 
गद्दारी न हो

5:चाह है यही 
हो भारत से दूर 
भूख गरीबी 

6:माथे पे मेरे 
 तेरी माटी चमके 
 संझा सबेरे 

7:गाँधी बनूँ या 
सुभाष बन जाऊँ 
तो मोक्ष पाऊँ 

8:कर दे हम 
निछावर तुझी पे 
जान सनम 

9:जज्बा हमारा 
तिरंगे के नीचे हो 
संसार सारा 








शनिवार, 19 मई 2018

संभल जाओ..

 वत्स,आज तुम फिर आ गए मेरे पास
विनाश की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने.
अपने ही हाथों से अपना सर्व नाश कराने.
कब समझोगे मेरे ही अस्तित्व में निहित है
तुम्हारा भविष्य सुनहरा.
फिर भी चोट कर - करके धरा को तुमने कर दिया है अधमरा.

कैसे हो सकते हो तुम इतने कृतघ्न!
क्या तुम्हें बिल्कुल भी नहीं स्मरण!
कि मेरे ही फलों से तुममें होता है ऊर्जा का स्फूरण.
मेरी प्रक्षेपित वायु से होता है तुम्हारे प्राणों में स्पंदन .
मेरे रंगीं पुष्पों को देख तुम्हारे चेहरों पर आती है मुस्कान.
फिर भी क्यों हो तुम अपने भयावह भविष्य से अनजान.

संग मेरे जब खेलती है गिलहरियां
तो क्या वो तुम्हें चिढ़ाती हैं.
मेरी ओट में कोयल जब पंचम सुर लगाती है
तो क्या तुम्हें डराती हैं.
मेरी बाहों में झूला डाल झूलती हैं जब ललनाएँ
तो क्या तुम्हें नहीं भाता है.
नन्हें मुन्ने जब खेलते हैं चढ़के मुझपर
तो क्या वह भी तुम्हें खलता है.

इस वसुधा का हरा रंग तो तुम्हें खूब लुभाता है
मेरी छाँव तले विश्राम भी तुम्हें खूब भाता है
आज से नहीं युगयुगांतर से मेरा तुम्हारा नाता है .
फिर भी तुम्हें क्यों कुछ समझ नहीं आता है.

मैं ही तो बादलों को बुलाकर वर्षा  करवाती हूँ.
मैं ही तो तुम्हें सूर्य के भीषण ताप से बचाती हूँ
बिन मेरे तुम कितने क्षण बिता पाओगे
बिन श्वास के क्या तुम जी पाओगे

विकास के इस अंध प्रवाह में
फिर क्यों तुम दौड़ लगा रहे हो!
भावी पीढ़ी के लिए आखिर
कौनसा उपहार छोड़े जा रहे हो!

समय है अब भी संभाल जाओ!
मुझपर कुल्हाड़ी न चलाओ!

याद रहे सामने तुम्हारे चुनौती बड़ी है.
अब मेरी निस्वार्थ सेवा का फल देने की घड़ी है

अपनी भावी पीढ़ी के शत्रु तुम न बनो.
उनके अच्छे भविष्य की नीव धरो.
कम से कम अपने जन्मदिन
पर ही वृक्षारोपण करो.

गुरुवार, 17 मई 2018

विलुप्त की खोज


संवेदनाओं के भँवर में तैरते - तैरते
जाना मैंने कि मूरख हूँ मैं.
समझदारों की इस भीड़ में
इंसानों की खोज में हूँ मैं.

हाँ! इंसान की ,
जो कभी 'हुआ' करते थे
कब हुए वो लुप्त, अज्ञात है ये बात.
डायनासोर, डोडो पक्षी
या जैसे लुप्त हुई
कई अन्य प्राणियों की जात .

शायद भगवान से
खो गया है वह सांचा
जिसमें बनते थे इन्सां.
या फिर टूट गई है
वो सीढी जिससे
नीचे उतरते थे इन्सां.

छानी पुस्तकें कई ,
दिया गूगल बाबा को भी काम.
पर अफसोस... अपनी इस खोज में
सदा रहा नाकाम.

नहीं मिली कोई भी जानकारी
कि कब हुआ वह ग़ायब.
न जाने ईश्वर की वह नायाब रचना
फिर जन्म लेगी कब.

हाँ, इंसान के समरूप मुखड़े,
वैसी ही काठी और कद वाले
पुतले देखती हूँ मैं रोज.
जब करते हैं बातें भी वे समझदारी वाली
तब लगता है यूरेका.......
सफल हुई मेरी खोज.

पर मेरी समझ से
परे हैं ये समझदार.
गच्चा देने में सचमुच
माहिर हैं ये कलाकार.

पता ही नहीं लगता
कि हर एक को समझते हैं
वो अपना प्रतिद्वंद्वी.
लेकिन मैं किसी भी अंधी दौड़ में
शामिल नहीं ,
मैं हूँ एकदम फिसड्डी.

उन जैसी बातें भी
कभी मैं कर नहीं पाता हूँ .
इसलिए समझदारों की दुनिया में
मैं खुद को मूरख ही पाता हूँ.







रविवार, 13 मई 2018

प्यारी माँ





 अदृश्य सी वह शक्ति जो सदैव मेरे साथ है
 पता है मुझे माँ, कि वह तेरा ही आशीर्वाद है

तेरा प्यार,तेरी ममता, तेरा स्नेह माँ निर्विवाद है 
तू मेरी संगी,मेरी साथी ,मेरी ईश्वर प्रदत्त मुराद है

तू मेरा बल, संबल, मेरे जीवन का आल्हाद है 
तू गीत है, संगीत है , मेरे जीवन का नाद है 

मेरा घर, परिवार, मेरा संसार तुझसे आबाद है
तू पूजा ,अराधना, तू ईश्वर से साधा मेरा संवाद है 

माँ, तू है तो जीवन में खुशी है, हर्ष है,उन्माद है 
तू मेरे चेतन, अचेतन, मेरे अस्तित्व की बुनियाद है