शनिवार, 13 मई 2017

माँ

माँ

माँ ऐसा कुछ नहीं,
जो तेरी ममता के समतुल्य है!
मुझपर तेरा प्रेम, तेरा कर्ज अतुल्‍य है!

धूप में सदा तू छाँह की तरह रही ,
पापा की डाँट से बचाने वाली ढाल की तरह रही!
मेरी दुख की घड़ियों में सुख के सुर और मधुर ताल की तरह रही!

अपनी हर ख्वाहिश को दबा कर,
मेरी हर ख्वाहिशों को पूर्ण किया!
मुझे चेतना दी, ज्ञान दिया
हर तरह परिपूर्ण किया!

मान सम्मान और स्वाभिमान से
जीने की  कला सिखाई!
मेरे बहकते कदमों को
सही राह दिखाई!

तुझसे दूर होने पर एक खालीपन का
एहसास होता है मुझे!
 फिर भी आसपास तेरे साये का
आभास होता है मुझे!

माँ... तेरी हर बात शिरोधार्य है!
तेरा होना,
मेरी जीवन्तता के लिए अपरिहार्य है!

माँ तेरा कोई सानी नहीं!
तेरी ममता के आगे
प्यार की कोई कहानी नहीं!

माँ...
तुझे शत् शत् नमन
तुझे शत् शत् नमन..

Happy mothers day

सुधा सिंह  🦋




बुधवार, 10 मई 2017

'भावों की गरिमा '



'भावों की गरिमा '



भावों की क्या बात करें
भावों की अपनी हस्ती है
भावो के  रंग भी अगणित हैं
इससे ही दुनिया सजती है

मूल्यांकन भी  इसका ...
व्यक्ति दर व्यक्ति होता है!
गैरों को भी प्रेम भरी
माला में ये तो पिरोता है

भाव महानुभावों के है तो
'वाह भाई वाह.. क्या बात' है
दीन, अकिंचन, मजदूर के हैं
तो उसकी क्या 'औकात' है!

माँ के भाव शिशु के लिए
ममता बन जाते हैं..
पति पत्नी में रोमांस जगाते हैं
शत्रु में  बैर बढ़ाते हैं!

शाहजहाँ के भावों ने  था,
ताजमहल  को बनवाया!
अनारकली को अकबर ने,
दीवारों में  था चुनवाया !

 जिन रंगो से पोषित होते,
ये वही रँग दिखाते हैं!
खुशियों में आँखों से बहते,
दुख में कंठ रून्धाते हैं!

श्रद्धा से चरणों में गिरते
गर्व में शीश उठाते हैं!
मान में करते सीना चौड़ा
लज्जा में सिर को झुकाते हैं!

पत्थर जैसे कठोर है ये
कभी ओस की तरह पावन भी!
हिय में टीस उठे जब भी
नयनो से बरसता सावन हैं

रंग है इसके भाँति भाँति
व्यक्ति का निर्माता ये!
जैसा जिसने रंग चुन लिया
वैसी छवि बनाता ये!

तो..
दूजे के भावों को समझना
बहुत - बहुत जरूरी है!
यही बढ़ाए निकटता ,
और यही बढ़ाता दूरी है!

भावों की क्या बात करें..
भावों की अपनी हस्ती है!
भावो के  रंग भी अगणित हैं..
इससे ही दुनिया सजती है!

सुधा सिंह 🦋






रविवार, 7 मई 2017

मुझे ऐसा हिंदुस्तान चाहिए!


मुझे ऐसा हिंदुस्तान चाहिए!

मुझे एक खुला और उन्मुक्त आसमान चाहिए!
बिके जहाँ आशा का सूरज, ऐसी एक दुकान चाहिए! (1)

संवेदनाए अभी बाकी हो जिसमें, ऐसा इन्सान चाहिए!
दरों -दीवारों से टपके जहाँ प्रेम रस, ऐसा एक मकान चाहिए!(2)


मझधार में फंसे डूबते जहाज को जो पार लगा दे, ऐसा कप्तान चाहिए!
देशहित में जी - जान लुटा दे, ऐसा नौजवान चाहिए!(3)

रेगिस्तान में जो पुष्प खिला दे, ऐसा बागबान चाहिए!
दुर्दिन में भी जो अविचल रहे, ऐसा ईमान चाहिए!(4)

जो सुप्त आत्मा को जगा दे, ऐसा अंतरज्ञान चाहिए!
जो उन्नत शिखर तक पहुंचा दे, ऐसा सोपान चाहिए!(5)

देश की गरीबी और भुखमरी का, समाधान चाहिए!
आरक्षण की बात न हो जिसमें, ऐसा एक संविधान चाहिए!(6)

धर्म - अधर्म से परे हो जो, ऐसा एक जहान चाहिए!
चैन से जी सकूँ जहाँ, हाँ.. मुझे ऐसा  हिंदुस्तान चाहिए! (7)

सुधा सिंह 🦋