बुधवार, 3 मई 2017

आख़िरी लम्हा


 आख़िरी लम्हा

और हाथ से रेत की तरह फिसल गया
जो कुछ अपना सा लगता था!
दोनों हाथों को मैं निहारता रहा
बेबस, लाचार, निरीह - सा
और सोचता रहा, कहाँ से चला था,
पहुंचा कहाँ हूँ!

उम्र की साँझ ढलने को है,
कितना कुछ छूट गया पीछे,
खड़ा हूँ, अतीत के पन्नों को पलटता हुआ,
भूतकाल की सीढ़ियों से गुजरता हुआ!
पुरानी यादों के कुछ लम्हे,
खुशियों और गम में बंटे हुए!
खोकर कुछ पाया था !
पाकर कुछ खोया था

इधर मैले कुचैले से कुछ ढेर
उधर जर्जर - सी खाली पड़ी मुंडेर!
उजड़े हुए घोसले
वीरान खड़े पेड़!

न चिड़ियों का कलरव,
न बच्चों की आहट!
न बाहर से कोई दस्तक,
न भीतर कोई सुगबुगाहट!

समय उड़ रहा है पंख लगाए
अब न किसी के आने की आस
न किसी के जाने की फिकर
सब कुछ बेतरतीब तितर बितर

घड़ी की टिक- टिक के साथ,
गुजरते पलों में,
उस आखिरी लम्हें का इंतज़ार

बस अब यही है पाने को.....



रविवार, 23 अप्रैल 2017

अहसास

इल्म है मुझे कि तुम मेरे दुख का सबब भी न पूछोगे,
सोचके कि कही तुम्हें आँसू न पोछने पड़ जाएं
शायद अनजान बने रहना
ही तुम्हें वाजिब लगता है.

सुधा सिंह

गुरुवार, 20 अप्रैल 2017

तसव्वुर उनका.

देखा उन्हें ख्यालों में खोए हुए,
न जाने किसका तसव्वुर है,
जो उन्हें उनसे ही जुदा कर रहा है.

सुधा सिंह 

मंगलवार, 28 मार्च 2017

आईना



हमने उन्हें आईना दिखाया
 तो वे बुरा मान गए,
 शायद उन्हे सत्य से परहेज है. 

बाल कविता :भारत माँ के वीर सपूत हम

भारत माँ के वीर सपूत हम,
कभी नहीं घबराएंगे!
नहीं डरेंगे दुश्मन से,
छाती पर गोली खाएंगे!

हम साहस से भरे हुए हैं,
हर विपदा दूर भगाएंगे!
बधाए आती है आए,
हम उनसे टकराएंगे!
ध्वज को सदा रखेंगे ऊंचा,
उसकी शान बढ़ाएंगे!
भारत माँ के वीर सपूत हम,
हम कभी नहीं घबराएंगे!

रक्त से रंजित धरा न होगी,
हम सौगंध ये खाते हैं!
भारत माँ की सीमा की,
रक्षा की कसम उठाते हैं!
गर दुश्मन आँख दिखाएगा,
हम उसको सबक सिखाएँगे!
भारत माँ के वीर सपूत हम,
कभी नहीं घबराएंगे!

हम में लोहा भरा हुआ है,
हम न कभी भी डिगने वाले!
हम को रोक सका न कोई,
हम सीधी डगर पर चलनेवाले!
कोई राह हमारी रोके,
उसको सबक सिखाएँगे!
भारत माँ के वीर सपूत हम,
कभी नहीं घबराएंगे!

महाराणा है बच्चा- बच्चा,
हर लड़की लक्ष्मीबाई है!
वीर शिवाजी के वंशज,
हम नई क्रांति लाएंगे!
'सोने की चिड़िया' को फिर से
ऊंचे गगन उड़ाएंगे!
भारत माँ के वीर सपूत हम
हम कभी नहीं घबराएंगे!


मातृभूमि है सबसे ऊपर,
सबको ये बतलाना है!
ऊंच नीच और जाति भेद को,
जड़ से हमे मिटाना है!
भारत की संस्कृति को,
फिर से पल्लवित कर दिखलाएंगे!
भारत माँ के वीर सपूत हम,
हम कभी नहीं घबराएंगे!

©सुधा सिंह