सोमवार, 26 फ़रवरी 2018

रुसवाई




 आंसुओं को कैद
कर लो मेरे 
 कहीं बहकर ये
फिर कोई राज न खोल दे
 मेरी रुसवाई  में इनका भी बड़ा हाथ है. 


शनिवार, 24 फ़रवरी 2018

प्रेम रस




तुम कान्हा बन आओ तो नवनीत खिलाएँ
भोले शंकर बन जाओ तो भंग - धतूर चढ़ाएं 
 पर
दिल तो प्रियवर के प्रेम से परिपूरित है.
थोड़ा भक्ति रस ले आओ तो कुछ बात बने.

सुधा सिंह 🦋 

क्षणिकाएं





1:पहचान

यूँ तो उनसे हमारी जान पहचान
बरसों की है पर....
फिर लगता है कि क्या
उन्हें सचमुच जानते हैं हम

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2:जिन्दगी

जिन्दगी जीने की चाह में
जिन्दगी कट गयी
पर जिन्दगी जीई न गई

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3:पल

हमने पल - पल
बेसब्री से जिनकी
राह तकी
वो पल तो
हमसे बिना मिले
ही चले गए

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4:ऊँचाई

ऊँचाई से डर लगता है
शायद इसीलिये
आज तक मेरे पाँव
जमीं पर हैं

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5:कलयुग...

यूँ तो हीरे  की परख,
केवल एक जौहरी  ही कर सकता है
पर
आजकल  तो जौहरी  भी,
नकली की चमक पर फिदा हैं
कलयुग इसे  यूँ ही तो नहीं कहते...

शुक्रवार, 23 फ़रवरी 2018

प्रश्न

उग आते हैं कुछ प्रश्न ऐसे
जेहन की जमीन पर
जैसे कुकुरमुत्ते
और खींच लेते हैं
सारी उर्वरता उस भूमि की
जो थी बहुत शक्तिशाली
जिसकी उपज थी एकदम आला
पर जब उग आते हैं
ऐसे कुकुरमुत्ते
जिनकी जरुरत नहीं थी किसी को भी
जो सूरज की थोडी सी उष्मा में
दम तोड देते हैं।
पर होते हैं शातिर परजीवी
खुद फलते हैं फूलते हैं
पर जिसपर और जहाँ पर भी पलते हैं ये
कर देते हैं उसे ही शक्तिहीन
न थी जिसकी आवश्यक्ता उस भूमि को
और न ही किसी और को
फिर भी उग आते हैं ये प्रश्न
खर पतवार की तरह
अपना अस्तित्व साबित करने
कुछ कुकुरमुत्ते होते हैं जहरीले
इन्हें  महत्व दिया जरा भी
तो हाथ लगती है
मात्र निराशा
होता है अफसोस
धकेल देता है ये
असमंजस के भंवर में उसे
जिसके ऊपर
 इसने पाया था आसरा
बढ़ाई थी अपनी शक्ति
और काबू पा लेता है उस पर
जो फँसा इनके कुचक्र में
घेर लेते हैं जिसे ये प्रश्न
छीन लेते हैं चैन और सुकून
छोड़ देते हैं उसे
बनाके शक्तिहीन ...
आखिर क्यों उगते हैं ये प्रश्न?

सुधा सिंह🦋

गुरुवार, 15 फ़रवरी 2018

आलोक बन बिखरना



कोई बढ़ रहा हो आगे, मंजिल की ओर अपने
रस्ता बड़ा कठिन हो, पर हो सुनहरे सपने
देखो खलल पड़े न , यह ध्यान देना तुम
कंटक विहीन मार्ग, उसका कर देना तुम

माँगे कोई सहारा, यदि हो वो बेसहारा
मेहनत तलब हो इन्सां, न हो अगर नकारा
बन जाना उसके संबल, दे देना उसको प्रश्रय
गर हो तुम्हारे बस में , बन जाना उसके शह तुम

भटका हुआ हो कोई या खो गया हो तम में
हो मद में चूर या फिर, डूबा हो किसी गम में
हो चाहता सुधरना, आलोक बन बिखरना
बन सोता रोशनी का, सूरज उगाना तुम
                                             पढ़िए :रैट रेस

दुर्बल बड़ा हो कोई, या हो घिरा अवसाद से
हो नियति से भीड़ा वो, या लड़ रहा उन्माद से 
हास और परिहास उसका, कदापि करना न तुम
यदि हो सके मुस्कान बन,अधरों पे फैलना तुम

न डालना कोई खलल,न किसी से बैर रखना
हर राग, द्वेष, ईर्ष्या से, दिल को मुक्त रखना
हर मार्ग है कंटीला, ये मत भूलना तुम
बस राह  पकड़ सत्य की, चलते ही जाना तुम

सुधा सिंह 🦋