IBlogger interview
शनिवार, 24 फ़रवरी 2018
क्षणिकाएं
1:पहचान
यूँ तो उनसे हमारी जान पहचान
बरसों की है पर....
फिर लगता है कि क्या
उन्हें सचमुच जानते हैं हम
**************
2:जिन्दगी
जिन्दगी जीने की चाह में
जिन्दगी कट गयी
पर जिन्दगी जीई न गई
*********
3:पल
हमने पल - पल
बेसब्री से जिनकी
राह तकी
वो पल तो
हमसे बिना मिले
ही चले गए
*********
4:ऊँचाई
ऊँचाई से डर लगता है
शायद इसीलिये
आज तक मेरे पाँव
जमीं पर हैं
*********
5:कलयुग...
यूँ तो हीरे की परख,
केवल एक जौहरी ही कर सकता है
पर
आजकल तो जौहरी भी,
नकली की चमक पर फिदा हैं
कलयुग इसे यूँ ही तो नहीं कहते...
शुक्रवार, 23 फ़रवरी 2018
प्रश्न
उग आते हैं कुछ प्रश्न ऐसे
जेहन की जमीन पर
जैसे कुकुरमुत्ते
और खींच लेते हैं
सारी उर्वरता उस भूमि की
जो थी बहुत शक्तिशाली
जिसकी उपज थी एकदम आला
पर जब उग आते हैं
ऐसे कुकुरमुत्ते
जिनकी जरुरत नहीं थी किसी को भी
जो सूरज की थोडी सी उष्मा में
दम तोड देते हैं।
पर होते हैं शातिर परजीवी
खुद फलते हैं फूलते हैं
पर जिसपर और जहाँ पर भी पलते हैं ये
कर देते हैं उसे ही शक्तिहीन
न थी जिसकी आवश्यक्ता उस भूमि को
और न ही किसी और को
फिर भी उग आते हैं ये प्रश्न
खर पतवार की तरह
अपना अस्तित्व साबित करने
कुछ कुकुरमुत्ते होते हैं जहरीले
इन्हें महत्व दिया जरा भी
तो हाथ लगती है
मात्र निराशा
होता है अफसोस
धकेल देता है ये
असमंजस के भंवर में उसे
जिसके ऊपर
इसने पाया था आसरा
बढ़ाई थी अपनी शक्ति
और काबू पा लेता है उस पर
जो फँसा इनके कुचक्र में
घेर लेते हैं जिसे ये प्रश्न
छीन लेते हैं चैन और सुकून
छोड़ देते हैं उसे
बनाके शक्तिहीन ...
आखिर क्यों उगते हैं ये प्रश्न?
सुधा सिंह🦋
जेहन की जमीन पर
जैसे कुकुरमुत्ते
और खींच लेते हैं
सारी उर्वरता उस भूमि की
जो थी बहुत शक्तिशाली
जिसकी उपज थी एकदम आला
पर जब उग आते हैं
ऐसे कुकुरमुत्ते
जिनकी जरुरत नहीं थी किसी को भी
जो सूरज की थोडी सी उष्मा में
दम तोड देते हैं।
पर होते हैं शातिर परजीवी
खुद फलते हैं फूलते हैं
पर जिसपर और जहाँ पर भी पलते हैं ये
कर देते हैं उसे ही शक्तिहीन
न थी जिसकी आवश्यक्ता उस भूमि को
और न ही किसी और को
फिर भी उग आते हैं ये प्रश्न
खर पतवार की तरह
अपना अस्तित्व साबित करने
कुछ कुकुरमुत्ते होते हैं जहरीले
इन्हें महत्व दिया जरा भी
तो हाथ लगती है
मात्र निराशा
होता है अफसोस
धकेल देता है ये
असमंजस के भंवर में उसे
जिसके ऊपर
इसने पाया था आसरा
बढ़ाई थी अपनी शक्ति
और काबू पा लेता है उस पर
जो फँसा इनके कुचक्र में
घेर लेते हैं जिसे ये प्रश्न
छीन लेते हैं चैन और सुकून
छोड़ देते हैं उसे
बनाके शक्तिहीन ...
आखिर क्यों उगते हैं ये प्रश्न?
सुधा सिंह🦋
गुरुवार, 15 फ़रवरी 2018
आलोक बन बिखरना
रस्ता बड़ा कठिन हो, पर हो सुनहरे सपने
देखो खलल पड़े न , यह ध्यान देना तुम
कंटक विहीन मार्ग, उसका कर देना तुम
माँगे कोई सहारा, यदि हो वो बेसहारा
मेहनत तलब हो इन्सां, न हो अगर नकारा
बन जाना उसके संबल, दे देना उसको प्रश्रय
गर हो तुम्हारे बस में , बन जाना उसके शह तुम
भटका हुआ हो कोई या खो गया हो तम में
हो मद में चूर या फिर, डूबा हो किसी गम में
हो चाहता सुधरना, आलोक बन बिखरना
बन सोता रोशनी का, सूरज उगाना तुम
पढ़िए :रैट रेस
दुर्बल बड़ा हो कोई, या हो घिरा अवसाद से
हो नियति से भीड़ा वो, या लड़ रहा उन्माद से
हास और परिहास उसका, कदापि करना न तुम
यदि हो सके मुस्कान बन,अधरों पे फैलना तुम
न डालना कोई खलल,न किसी से बैर रखना
हर राग, द्वेष, ईर्ष्या से, दिल को मुक्त रखना
हर मार्ग है कंटीला, ये मत भूलना तुम
बस राह पकड़ सत्य की, चलते ही जाना तुम
सुधा सिंह 🦋
शनिवार, 10 फ़रवरी 2018
जीवनदायिनी है नदिया
कल कल - संगीत मधुर, सुनाती है नदिया.
चाल लिए सर्पिणी- सी , बलखाती नदिया
तृष्णा को सबकी पल में मिटाती है नदिया
प्रक्षेपित पहाड़ों से होती है नदिया
वनों बियाबनों से गुजरती है नदिया
राह की हर बाधा से लड़ती है नदिया
सबके मैल धोके पतित होती है नदिया
मीन मकर जलचरों को पोषती है नदिया
अपने रव में बहते रहो, कहती है नदिया
तप्त हुई धरा को भिगाती है नदिया
अगणित रहस्यों को छुपाती है नदिया
शुष्क पड़े खेतों को सींचती है नदिया
क्षुधितों की क्षुधा को मिटाती है नदिया
क्रोध आए, प्रचंड रूप दिखाती है नदिया
फिर अपना बाँध तोड़ बिखर जाती है नदिया
कभी सौम्य है, तो कभी तूफानी है नदिया
कल्याण करे सबका जीवन दायिनी है नदिया
कई सभ्यताओं की जननी है नदिया.
खारे- खारे सागर की मीठी संगिनी है नदिया
सुधा सिंह 🦋
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