रात की थाली
बीस वर्षीया रागिनी को नहीं पता था कि सिंक में रखी वह एक थाली उसके ऊपर इतनी भारी पड़ेगी।
भोजन समाप्त होने के पश्चात रागिनी, विकास, और उनका बेटा आरव जाने कब के सो चुके थे। तभी अचानक से कमरे के दरवाजे पर जोर - जोर से ठक - ठक हुई। इस ठक- ठक से सबकी नींद उचट गई। दो वर्ष का मासूम आरव भी नींद टूट जाने के कारण रोने लगा था। घड़ी में तकरीबन ढाई बजे रहे थे। आँखों को मीचते हुए विकास ने दरवाजा खोला तो पाया कि पिताजी भन्नाए स्वर में शराब के नशे में जोर- जोर से चिल्ला रहे थे - "कहाँ है रागिनी, उठाओ उसे। समझ में नहीं आता उसे, रात में जूठे बर्तन सिंक में नहीं छोड़ते। रसोई जूठी हो तो देवी- देवता नाराज हो जाते हैं।"
रात को 11 से 12 बजे के दरमियान सबको खाना खिलाकर रागिनी ने एक थाली में अपने लिए भोजन निकाल कर रख दिया था कि बाद में खा लेगी।
बहू होने के नाते वह सबके साथ नहीं खा सकती थी। मजबूरीवश विकास को भी घरवालों के साथ ही खाना पड़ता था। विवाह के बाद विकास को भी कई बार ताने सुनने पड़े थे कि रागिनी के आने के बाद अधिक से अधिक समय उसके साथ ही बिताता है। उसके साथ ही खाना भी खाने लगा है। हम अब अच्छा नहीं लगते आदि आदि ।
इन तानों से बचने के लिए ही उसने भी रागिनी के साथ भोजन करना छोड़ दिया था। अब रागिनी को रसोई में बैठकर अकेले ही भोजन करने की आदत हो गई थी । भोजन करना भी मात्र उसके लिए एक ड्यूटी बन कर रह गया था । घर के अन्य कार्यों की तरह वह भी एक ऐसा ही कार्य था जिसके बगैर नहीं चल सकता था।
आज भी उसने यही सोचा था कि रसोई के सारे काम निबट जाने के बाद वह भी खाना खाकर सो जाएगी।
सास- ससुर को छोड़ कर घर के सभी सदस्य सो चुके थे परंतु ससुर जी शराब के नशे में धुत होकर अपने कमरे में रोज की तरह बडबड़ा रहे थे।
ससुराल में नियम था कि रात में जूठे बर्तन रसोई में नहीं होने चाहिए, गैस चूल्हे को साफ करके ही सोना है।
काम समाप्त होते - होते रोज की तरह रात के एक बज चुके थे।जैसे तैसे उसने अपना भोजन भी ख़त्म किया। पर उस रात्रि वह बहुत अधिक थकावट महसूस कर रही थी इसलिए उसने सोचा कि बस एक थाली ही तो है। क्या फर्क पड़ता है। सुबह उठते ही साफ कर लेगी। किसी को कुछ पता नहीं चलेगा। यही सब विचार कर के वह भी सोने चली गई।पर शायद होनी को कुछ और ही मंजूर था।
इस दौरान ससुर जी न जाने किस काम से रसोई घर में आये।सिंक में पड़ी उस जूठी थाली पर उनकी नजर पड़ गई।फिर क्या था, उनका पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया। गालियाँ बकते - बकते रागिनी से उन्होंने उसी समय वह थाली धुलवाई और तमतमाते हुए अपने कमरे की ओर चले दिए।रागिनी की आँख से भर - भर आँसू बहते रहे।सास और पति चुपचाप खड़े यह सब देखते रह गए।
सुधा सिंह 🖋
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