रविवार, 12 नवंबर 2017

जीवन की विडम्बनाएँ




बात नहीं करती मैं
 तारों और सितारों की
न ही मैं बात करती हूँ
खूबसूरत नजारो की
मैं बात करती हूँ
इंसानियत के पहरेदारों की

मैं बात करती हूँ
जीवन की विडम्बनाओं की
सालती हुई वेदनाओं की

बात करती हूं
मन में उठती हुई भावनाओं की
धनाभाव में मृतप्राय हुई
निरीह महत्वाकांक्षाओं की

मैं बात करती हूँ
गूदड़ी में पलने वाले लाल की
गरीब की थाली में
न पहुंचने वाली दाल की

कर्ज में डूबे
आत्महन्ता किसानों की
सीमा पर दुश्मन की बर्बरता से
शहीद होते जवानों की

मैं बात नहीं करती मंदिरों और मजारों की
मैं बात करती हूँ
सिसकती हुई रूह की
जूझती हुई जिन्दगी और उहापोह की

मैं बात करती हूँ
दम तोड़ती मासूमियत की
रोती बिलख़ती आदमियत की

मासूमो की आबरू को ताड़ ताड़ करती
मलिन निगाहों की
खुलेआम होते गुनाहों की

जाति पाती की भेट चढ़ती
निर्दोष चिताओं की
छलकपट करने वाले
बगुला भगत नेताओं की

बात नहीं करती मैं
जन्मदिन के उपहारों की
मै बात करती हूँ देश के गद्दारों की

माँ की कोख में
मरती हुई बेटियों की
पार्टियों में, शादियों में
बर्बाद होनेवाली रोटियों की
भेड़ की खाल में छुपे बैठे भेड़ियों की
नारी को चारदीवारी में कैद करती रूढ़ियों की

नहीं मैं नहीं बात करती
सजे धजे बाजारों की
मैं बात करती हूँ
संस्कारों और कुरीतियों में
बांधने वालों बेड़ियों की
दहेज की अग्नि में स्वाहा होती वधुओं की
जन की अस्था से खिलवाड़ करते
 ढोंगी साधुओं की

मैं बात नहीं करती अधिकारों की
बात करती हूँ
कर्तव्यों की,  ध्येय की.
बॉस द्वारा छीने जाने वाले
अधीनस्थों के श्रेय की
अपने अस्तित्व को स्थापित करने की
जद्दोजहद में लगे इंसानों की 
नई सुबह की आशा और उम्मीद लिए
आगे बढ़ने वाले दीवानों की

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

पाठक की टिप्पणियाँ किसी भी रचनाकार के लिए पोषक तत्व के समान होती हैं ।अतः आपसे अनुरोध है कि अपनी बहुमूल्य टिप्पणियों द्वारा मेरा मार्गदर्शन करें।☝️👇