कुछ चाहतों, ख्वाहिशों का अंबार लगा है!
सपनों का एक फानूस आसमान में टंगा है!
उछल कर,कभी कूदकर,
उसे पाने की कोशिश में
बार बार हो जाती हूँ नाकाम
जब कभी उदास, निराश हो बैठ जाती हूँ धरा पर
तो लगता है गड़ती जा रही हूँ..
न जाने किस दलदल में, किस अँधेरे में....
फिर अकस्मात.... मानो कोई अदृश्य शक्ति,
एक अदृश्य आवाज़ मुझे संबल देकर..
मेरा हाथ, अपने हाथ में लेकर
मुझे उठाती है, मुझे थपथपाती है...
मेरे सामने, मीठे गीत गुनगुनाती है..
और मुझे फिर से अपने सपने को पाने को उकसाती है...
लेकिन.... थोड़ी देर..
बस थोड़ी ही देर में... मुझे छोड़ जाती है.
शायद ...
शायद नहीं... हाँ... हाँ मेरे ही जैसे कई और भी तो हैं
जिन्हे जरूरत है उसकी.,
उसकी थपकियों की,
उसके प्यार की, उसके दुलार की!
न जाने कौन..
न जाने कौन.. इस समय...
अपने सपनों को पूरा न कर पाने की व्यथा में... दम तोड़ रहा हो!
उसके सपने धराशायी हो रहे हो.
उसे भी जरूरत है उस शक्ति की..
जो मुझे समय- समय पर, मेरे अंतर्मन को..
मेरे उजड़ते सपनों को पाने के लिए मुझे परवाज देती हैं
जब मैं बैठ जाती हूँ, मुझे आवाज देती हैं..
अब मैं भी वही आवाज़ बनना चाहती हूं
जो किसी के सपने को साकार करने में उसके काम आ सके.
मैं ही नहीं हर कोई...
हाँ.. हर कोई वह आवाज़ बन सकता है.
कइयों के नहीं... पर कम से कम किसी एक का जीवन सुधार सकता है.
और अपने भीतर के सुप्त इंसान को जगा सकता है.
दम तोड़ हो रही मानवता को पुनः पनपा सकता है!
(Pic credit :Google)