रविवार, 20 दिसंबर 2015

कोयल


कोयल तू चिड़ियों की रानी ,
चैत मास में आती है।
अमराई में रौनक तुझसे,
कली - कली मुसकाती है।

तेरे आने की आहट से,
बहार दौड़ी आती है।l
दूर रजाई  कम्बल होते,
हरी दूब बलखाती है।

आमों में मिठास है बढती,
वसंत ऋतु इठलाती है।
कौवे मुर्गे चुप हो जाते,
जब तू सुर लगाती है।

कर्णो में रस घुलता है ,
तेरी मीठी वाणी सुन।
अंग - अंग झंकृत हो जाता ,
कोयल तेरी ऐसी धुन।

कालिख तेरे पंखों पर है,
कंठ विराजे सरस्वती माँ।
सबको अपनी ओर खींचती,
जब भी छेड़ती राग अपना।

तेरी वाणी मधुर है इतनी,
पवन भी तान सुनाता है।
धीरे - से गालों को छूकर,
दूर कहीं बह जाता है।

कीट पतंगे जब तू खाती ,
खेतों में फ़सलें लहराती।
साथी बनकर कृषकों के,
अधरों पर मुस्कान है लाती।

कूक तेरी बंसी -सी लगती,
मादकता चहुँ ओर थिरकती।
जर में भी तरुणाई आती,
जब तू अपनी तान लगाती।

सुधा सिंह

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