उठ खड़ा हो अब देर न कर।
मातृभूमि आवाज दे रही ,
क्यों देखे तू इधर-उधर॥
अविश्वास, खोखलापन,
पैर पसारे भ्रष्टाचार।
आतंकवाद,खौफ के साये ,
बढ़ता हुआ ये अत्याचार॥
लुटती लाज,मर रही निर्भया,
बिकती लाशों का अम्बार।
इंसानियत दम तोड़ रही है,
कर रही है अब हाहाकार॥
सूख गया आँखों का पानी,
बढ़ी डकैती लूट- मार।
हैवानियत लालच का दैत्य,
बढ़ा रहा अपना आकार॥
रह गए सारे स्वप्न अधूरे,
क्या वे कभी होंगे साकार।
इस भूमि का कर्ज़ चुकाने ,
खड़ा हो अब और भर हुँकार॥
भगत सिंह और राजगुरु की,
एक बार है फिर दरकार।
उठो चंद्रशेखर ,बटुकेश्वर,
माटी की है ये ललकार॥
ज्वाला क्रांति की फिर भड़के,
इस धरती की यही पुकार।
अपने अपनों से मिल जाएं,
हर तरफ हो बस प्यार ही प्यार॥
हर तरफ हो बस प्यार ही प्यार....
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