मंगलवार, 26 दिसंबर 2023

उठो सपूतों...

 

उठो सपूतों... 


देख दुर्दशा भारत माँ की, 

शोणित धारा बहती है। 

दूर करो फिर तिमिर देश का 

उठो सपूतों कहती है।। 


इस स्वतंत्रता की खातिर, 

वीरों ने जानें खोई हैं।

फिर भी भारतवर्ष की जनता, 

चादर तान के सोई है ।। 

भूली वाणी भी मर्यादा, 

घात वक्ष पर सहती है। 

दूर करो फिर तिमिर देश का, 

उठो सपूतों कहती है।। 


स्वार्थ व्यस्त नेतृत्व में अपने 

स्वप्न हिन्द के चूर हुए। 

सत्ता और कुर्सी ने नीचे 

दबने को मजबूर हुए।। 

रच दो फिर से संविधान नव

पाँव तुम्हारे गहती है। 

दूर करो फिर तिमिर देश का 

उठो सपूतों कहती है।। 


कभी फाँकते रेती तपती, 

गहन ठंड से ठरते हैं। 

हम गद्दारों की खातिर ही, 

वे सीमांत पे लड़ते हैं।। 

हैं उनको यह ज्ञात देश की, 

रज- रज कितनी महती है। 

दूर करो फिर तिमिर देश का, 

उठो सपूतों कहती है।। 



खो जाने से पहले

इन पेड़ों, पहाड़ों, झरनों, 

नदियों और बियाबानों 

के विशालतम अस्तित्व 

के समक्ष तृण- सी बौनी मैं 

इनमें ही विलीन हो

पहुँचूँगी इक दिन 

शून्य के सर्वोच्च शिखर पर। 


समा जाएगा धुन्ध में 

मेरी देह का एक - एक कण, 

गिरुँगी मैं फिर बनकर प्रालेय 

और भिगाउँगी नव कोपलों को, 

करूँगी शांत तृषित जीवों को, 

सबकी आँखों से ओझल, 

प्रकृति के स्नेह सिक्त अंचल में, 

चिर निद्रा की सुखद अनुभूति लिए, 

मैं विचरुँगी अवचेतना के संग। 


किन्तु, 

किन्तु कैसे कर दूँ अवमानना 

उस जगत नियंता की

जिसने तय किया है 

उस अहसास से पहले 

इहलोक में अपने अपनों के लिए जीने का 

इसलिए खो जाने से पहले 

खोजना है मुझे स्व को, 

परमार्थ को, 

लक्ष को नहीं, 

किंतु नियत लक्ष्य को। 


 सुधा सिंह 'व्याघ्र' ✍️ 











तड़पे ओजहीन हो..

 नवगीत:2

तड़पे ओजहीन हो वसुधा 


तड़पे ओजहीन हो वसुधा 

रसमय स्नेह सुधा बरसाना 

निर्दयता हृदय में धरकर 

बिसरे सुरभित कुसुम खिलाना


1

छालों से आहत अंतस है

उलझन में है कटता जीवन

सुखद पवन आँधी बन आई

उजड़ गए हैं मन के उपवन

दुष्चक्रों की अग्नि लटा में 

छोड़ो अब हमको झुलसाना

तड़पे ओजहीन हो वसुधा......


2


अँधियारे ने पाँव पसारे

आशा की नहीं दिखे उजास

पतझड़ का चहुँ ओर राज है

लुप्त है क्यों मेरा आकाश

काल चक्र निर्धारित करके

भूल चुके क्या याद दिलाना

तड़पे ओजहीन हो वसुधा......


3

मानवता विधि पर रोती है

अब उसका अस्तित्व बचा ना

लोभ मोह माया में फँसकर

मक्कारी का गाये गाना

क्यों ये खेल रचाया विधना

सद्कर्मों की राह सुझाना

तड़पे ओजहीन हो वसुधा......


सुधा सिंह 'व्याघ्र'




श्री राम स्तुति :कतिपय दोहे


अवधपुरी हर्षित हुई, जन्में बालक राम ।

प्रमुदित सब नर नारियाँ,छवि देखी अभिराम।। 


 दो अक्षर का नाम है, रघुकुल नंदन राम

सुमिरन कर ले रे मना, प्रभु आएँगे काम। 


दसकंधर को तार के, पहुँचाया निज धाम 

शुभकारी श्री राम को, भज लो आठों याम



 


देर ना करना पिया जी... गीत


देर ना करना पिया जी... गीत

देर ना करना पिया जी
आस की फिर लौ जली है ।
चाँदनी भी खिलखिलाई
बाग में चटकी कली है ।।

 तान छेड़े मन मुरलिया,
रात दिन तुमको पुकारे।
दूरी अब जाए सही न
तू कहाँ है ओ पिया रे।। 1।।

उर्मियाँ हिय की उछलती
जलधि से मिलने चली है।
देर ना करना पिया जी
आस की फिर लौ जली है ।।

  बिन तुम्हारे जगत सूना
हर तरफ अंधियारा है।
चांदनी  रातें न भाएँ
लगती ज्यों अंगारा है।।

दर्श को आँखें तरसती
विरह में पल पल जली है।
देर ना करना पिया जी
आस की फिर लौ जली है ।।2।।

हृदय में मूरत तुम्हारी
है पिया मैंने बसाई।
तुम्हीं हो हर ओर दिखते
तुम्हीं हो देते सुनाई।।

राह कब तक और देखूँ
साँस की संझा ढली है।
देर ना करना पिया जी
आस की फिर लौ जली है ।।3।।