गुरुवार, 3 सितंबर 2015

आरक्षण



आरक्षण की आग लगी है ,
देश में ऐसा मचा बवाल ।
सोना की चिड़िया था जो,
चलता अब कछुए की चाल।

अम्बेडकर, गांधी ,नेहरू,
सबने चली सियासी चाल ।
देश की नीव को करके  खोखला ,
पकड़ा दी आरक्षण की ढाल।

आरक्षण की लाठी लेकर,
 कौवा चला हंस की चाल।
मेहनतकश मरता बेचारा ,
फंसके आरक्षण की जाल।

अनूसूचित जाति में जन्मे ,
तब तो समझो हुआ कमाल।
कुर्सी पर आराम से बैठो ,
और जेब में हाथ लो डाल।


बिना कुछ किये मिलेगा मेवा,
सोच न क्या है देश का हाल।
मेहनत से हमको क्या है लेना,
हम अनुसूचित जाति के लाल।

हम बैठ मजे से ऐश करेंगे ,
न होगा हमारा बांका बाल।
जिनको मरना है मर जाये,
हमसे न कोई करे सवाल।

उन सबका अधिकार छीनकर ,
कर देंगे उनको कंगाल।
पढ़ लिखकर हमको क्या करना ,
है साथ हमारे आरक्षण की ढाल।

वोट बैंक भी पास हमारे ,
और नेता है हमारी मुट्ठी में।
जिनको अपनी कुर्सी प्यारी,
वो करें हमारी देखभाल।





बुधवार, 2 सितंबर 2015

अस्तित्व

अस्तित्व

माना, तू  पापा का दुलारा है।
माँ की आँखों का तारा है।
उनका प्यार, उनकी दौलत तेरे साथ है।
और तुझे सहारे की दरकार है।

 क्या हुआ कि मैं एक लड़की हूँ।
मेरा भी एक अस्तित्व है।
मैं अपना आसमाँ खुद तलाशूंगी।
मैं अपनी तकदीर खुद लिखूंगी।
मुझे किसी सहारे की जरुरत नहीं।
क्योंकि मेरे साथ ऊपर वाली सरकार है।

जाने कैसे एक ही कोख से जन्म लेने बाद भी
 बेटा अपना और बेटी पराई होती है।
यह सोचकर कई बार मेरी आँखे नम होती हैं।
पर मैं स्वयं ही सशक्त हूँ,
मुझे हार नहीं स्वीकार।

मेरा आत्मिवश्वास ,
मेरा सबसे बड़ा सहारा है।
मुझे मेरा आत्मसम्मान सबसे प्यारा है।
भीख पर तू जी सकता है।
मुझे तो उधार की जिंदगी से भी घृणा  है।

सोमवार, 31 अगस्त 2015

दिल की किताब




बहुत दिनों बाद दिल की किताब खुली है ।
पर इस पर थोड़ी सी धूल जमी है,
कुछ दूषित नजरों के साये है ,
कुछ अपनों के है  कुछ पराये हैं,
इन्हें साफ़ करने की इक आस जगी है,
बहुत दिनों बाद दिल की किताब खुली है।

कुछ पन्ने अभी कोरे है ,
कुछ पर काली स्याही है,
कुछ को कीड़े खा चुके ,
कुछ को खाने आये है,
बहुत दिनों बाद इन पर निगाह थमी है,
बहुत दिनों बाद दिल की किताब खुली है।

कहीं भीगी पलकों की नमी है,
कहीं माँ के आंचल की गर्मी है,
कुछ में  मीठी मीठी यादें  छुपी है,
फिर भी  ये मेरे सपनों से सजी है,
बहुत दिनों बाद दिल की किताब खुली है।

कहीं खुशियों का सवेरा है,
कहीं गहरे दुखों का अँधेरा है,
ये मेरी किताब है ,
इसे मैंने सजाया है ,मैंने सँवारा है,
बहुत दिनों बाद ये मुझसे मिली है,
बहुत दिनों बाद दिल की किताब खुली है।

इसमें कुछ अंतरंग पलों की स्मृतियां है,
कुछ नन्हे मुन्नों की गूँजती किलकारियां है,
कहीं सबकुछ खो देने की हताशा है,
कहीं दुनिया पा लेने की अभिलाषा है,
ये मेरे अहसासों से सजी है,
बहुत दिनों बाद दिल की किताब खुली है।