शुक्रवार, 28 अगस्त 2015

गुज़ारिश


मत खेल कभी जज़्बातों से,
मत रूह किसी की छलनी कर।
तेरी हस्ती मिट जायेगी,
बन्दा उसका चोटिल हो गर।

मासूम की आँखों से अश्रु,
गर बिना  बात के निकलेगा।
तू मिटटी में मिल जायेगा,
खुद को पहचान न पायेगा।

जब चोट पड़ेगी ईश्वर की,
आवाज तुझे न आएगी।
न तेरा कोई साथी होगा,
न मांगे मौत ही आयेगी।

'मालिक' हो साथ सदा जिसके,
कोई बाल न बाँका कर सका।
दिल में गर ज्वाला भड़की हो,
तो कौन कयामत रोक सका।

जब वक़्त का पहिया घूमेगा,
तो सबक तुझे सिखलायेगा।
निकलेगी हृदय से  'आह' अगर,
तेरा रोम- रोम जल जायेगा.....
तेरा रोम- रोम जल जायेगा।

मंगलवार, 25 अगस्त 2015

वह 'नर' ही 'नर' कहलाता है

जो पीर पराई समझ सके,
संग ईश्वर उसके रहता है।
निज स्वार्थ त्याग कर जो अपना,
दूजे का दर्द समझता है।
है मानस वह बड़ा महान,
जो परहित सदा सोचता है

संताप समझके गैरों का,
नम आँखे जिसकी हो जाये
इंसान असल में है वो ही,
जो तूफां से टकरा जाये।
पौरुष जिसका हो अति बली,
वह महापुरुष बन जाता है।

बाधा स्वयं दूर हो जाती,
वह जोश में जब आ जाता है।
दृढ़ इच्छा शक्ति है जिसमें,
वह 'नर' ही 'नर' कहलाता है।
आसमान नतमस्तक होता,
और पहाड़ झुक जाता है।

शुक्रवार, 21 अगस्त 2015

हर क्षण जीती हूँ मैं।


हर क्षण जीती हूँ मैं।

ज़र्रा ज़र्रा बिखरती हूँ मैं,
ज़र्रा ज़र्रा सिमटती हूँ मैं,
न जानू मैं  ,
कैसी कसक है ये !
न जानू मैं  ,
कैसा ये अहसास है!
क्षण- क्षण मेरी हस्ती ही
मुझे देती है चुनौती,
हौसले में दम और
उखड़ती सांसों में भरके प्राण ,
प्रतिपल जीवन से लड़ती हूँ मैं।
हर कसौटी को पार करती,
निराशा को मात देती ,
आशा को साथ लिए चलती हूँ मैं।
 हाँ ! हर क्षण जीती हूँ मैं।