शुक्रवार, 17 जुलाई 2015

एकता




आओ बच्चों  हम सब सीखे, जीने  का  एक  नया  सलीका।
हम सब अगर  एक  हो जाएँ ,  बाल न बांका  होगा  किसी का।

हाथी झुंड में  जब आता है, खूंखार  भेड़िया  घबराता है ।
है एकता  की  यह ताकत, आसमान  भी  झुक  जाता है ।

एक  बूंद  धरती पर गिरके ,क्षणभर में  मिट जाती है ।
मिले अगर  वह  और  बूंद  से, वह समुद्र  बन जाती है ।

 पुष्प अगर  अकेला  है तो,उपवन  नहीं महकते हैं ।
कई पुष्प जब मिल जाते हैं, माला  बनके  मुसकाते हैं।

एक  ऊंगली  कुछ  कर  नहीं  सकती,  पांचों  मिले तो क्या  है बात।
मिलकर मुट्ठी  जब बन जाते, खट्टे  हो दुश्मन  के  दांत ।

ये केवल  एक  शब्द नहीं, इसमें  असीम  ताकत का  वास।
हर बाधा  पर होगी  विजय, सब मिलकर  जब करें प्रयास ।

पुरखों  ने यह बतलाया  है, निसर्ग  ने  भी  सिखलाया है ।
साथ  सभी  जब आ जाएंगे,  ह्रास कभी  न  होगा  किसी का ।

आओ बच्चों  हम सब सीखे, जीने  का  एक  नया  सलीका।
हम सब अगर  एक  हो जाएँ ,  बाल न बांका  होगा  किसी का।

मंगलवार, 7 जुलाई 2015

क्यों वह कहीं और रोप दी जाती है ?


क्यों वह  कहीं  और  रोप दी जाती है ?

जिस  बगिया में  वह अपनी  पहली  सांस लेती है ।
जिस उपवन  को  वह अपनी  खुशबू से  महकाती है ।
जिसे देखकर  माली के चेहरे पर मुस्कान छलक जाती है ।
क्यों वह कहीं और रोप दी जाती है ?

जिसे देखकर  चमन में बहार आती है ।
जिसे देखकर  भंवरों में  चंचलता  आती है ।
वह पूरी तरह खिल भी नहीं पाती है ।
फिर वह  क्यों  बेरहमी से  तोड़  दी जाती है ?

देखकर  जिसे ऋतु वसंत  को तरुणाई  आती है ।
देखकर  जिसे  बयार मंद  - मंद  मुस्काती है ।
क्यों उसकी  खुशियां  जमाने  को रास नहीं  आती हैं?
क्यों वह अपनी  ही  माटी  से  उखाड़  दी जाती है?

ये कैसी रीति है कि
उसे अपना घर  छोड़ना ही पड़ता है ।
उसे अपने  बाबुल से बिछड़ना ही पड़ता है ।
वह अपने छोड़ , दूसरों के सपने सजाती है ।
फिर  भी क्यों  वह पराई  कही जाती है ?

आखिर क्यों  वह  कहीं और रोप दी जाती है? ............





शुक्रवार, 3 जुलाई 2015

वो शख्स कहाँ से लाऊँ ! !


दिल अपना  चीरकर किसे दिखाऊँ,
जो इसे समझ सके,
वो शख्स कहाँ से लाऊँ ! !
जो  मेरे  लफ्ज़ों को,  तराज़ू में न तोले
जो मुझे  समझ  ले, मेरे  बिन बोले ॥
वह शख्स  कहाँ से लाऊँ ! !
जो मुझपर ,
अपना अटूट विश्वास दिखा सके ॥
जो तहेदिल से बेझिझक,
मुझे अपने गले से लगा  सके॥
वह शख्स  कहाँ से लाऊँ ! !
जो  मेरे एहसास  का एहसास  कर सके,
जो सदैव ,
मुझे अपनी  कलयुगी निगाहों  से न  देखे॥
वह शख्स  कहाँ से लाऊँ ! !
जो हर पल मुझे ,
अपने साथ  होने  का  एहसास  दे॥
वह शख्स  कहाँ से लाऊँ ! !
वह
जो  मेरी  उखड़ती हुई सांसों को,
नवजीवन  की आस दे॥
 वह शख्स  कहाँ से लाऊँ ! !

बुधवार, 1 जुलाई 2015

बने रहें हम सब इनसान


प्रभु अरज मेरी  बस इतनी -सी है ,
बने  रहें  हम सब इनसान ॥
नजर में  कोई  खोट न हो,
न करें  किसी  का भी  अपमान ॥

करो कृपा  सही  राह  पकड़ लें,
औ' चल पाएं हम सीना तान ॥
न कभी किसी को दुखी करें ,
बना रहे सबका सम्मान॥

लालच अन्याय और अत्याचार,
मिट जाए इनका नाम निशान ॥
हमको इस काबिल देव बना ,
चोटिल न हो  हमारा स्वाभिमान ॥

न नीयत कभी बिगड़ने पाए,
सबको तू  इतना  दे भगवान ॥
 प्रभु अरज  मेरी  बस इतनी सी है ,
 बने रहे  हम सब इनसान ॥


विश्वास





मत हार मानकर ऐसे  बैठ,
कर  अपने पंखों  पर  विश्वास ॥
अंबर नीचे  आ जाएगा
और  तुझको  होगा  ये एहसास ॥

जब निश्चय  दृढ  हो जाता है
पूरी होती है  हर आस॥
अवरोध  सभी  मिट जाते हैं
जब  दिल  से  कोई  करे प्रयास॥

हर ओर  उजाला  होता है
अंधकार  का  होता  ह्रास ॥
जीत  नई  अंगडाई  लेती
और  बनाती  रिपु  को ग्रास॥

मन में धधकेगी जब 'लौ' तो
समय  बनेगा  तेरा  दास ॥
डैनों में भरके  नये  हौसले
उड़  चल  और  नाप आकाश ॥

मत  हार  मानकर ऐसे बैठ
 कर अपने  पंखों पर विश्वास ॥