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रविवार, 30 अगस्त 2015

हो अग्रसर

हो अग्रसर ,तू  अग्रसर
हो अपने पथ पे अग्रसर।
सैलाब से हो 'गर' सामना ,
या कांटो भरी, तेरी  हो डगर।
हो अग्रसर, तू अग्रसर।।

जीना उसका क्या जीना है ,
जो बैठ गए थक हार कर।
पा जाते हैं वे हर मंजिल,
जो बढ़ते हैं ,होकर निडर।
हो अग्रसर ,तू अग्रसर ।।

करता है इशारा बढ़ने का,
समय का पहिया  घूमकर।
सरिता बहती ही जाती है ,
जब तक नहीं, मिले सागर।
हो अग्रसर ,तू अग्रसर ।।

विघ्न बहुत से आएंगे ,
और आकर तुझे सतायेंगे,
ये क्षणिक हैं,इनसे न डर।
अंजाम की चिंता छोड़ दे,
न विचलित हो कुछ सोचकर।
हो अग्रसर ,तू  अग्रसर ।।

मंजिल खुद गले लगाएगी ,
भरसक हो तेरा प्रयत्न गर।
आलस्य को तू त्याग दे ,
कटिबद्ध होकर कर्म कर।
हो अग्रसर ,तू  अग्रसर ।।

पंखो में भरके हौसले  तू ,
अपनी नई उड़ान भर।
नित नई दिशाएँ खोज तू,
तू नव नभ का निर्माण कर।
हो अग्रसर ,तू  अग्रसर ।।