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रविवार, 22 सितंबर 2019

तेरे आंगन की गौरैया मैं .....

Daughters day

माँ, माना कि तेरे आंगन की 
गौरैया हूँ मैं... 
कभी इस डाल कभी उस डाल, 
फुदकती रहती हूँ यहाँ- वहाँ! 
विचरती रहती हूँ निर्भयता से, 
तेरी दहलीज के आर पार! 
जानती हूँ मैं 
तू डरती बहुत है कि 
एक दिन मैं उड़ जाऊँगी  
तुझसे दूर आसमान में! 
अपने नए आशियाने की
तलाश में! 
पर तू डर मत माँ 
मैं लौट कर आऊँगी
तेरे पास! 
अब मैं बंधनों में
और न रह पाऊँगी! 
समाज की रूढ़ियाँ,
विकृत मानसिकताएँ 
मेरे परों को अब 
नहीं बांध पाएँगी माँ.. "
जानती हूँ तुझे भी
बादलों से बतियाने
का मन है माँ 
चल आज तुझे भी 
अपने साथ 
नए आकाश में 
उड़ना सीखाऊँ मैं....
अब मैं निरीह नहीं माँ, 
मैं नए जमाने की बेटी हूँ ।

बेटी दिवस पर
सभी बेटियों को समर्पित 

14 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर और सार्थक रचना सुधा जी

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    1. इस त्वरित प्रक्रिया के लिए शुक्रिया आ. अनुराधा जी🙏🙏🙏😘

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 24 सितम्बर 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. क्या बात है वाह..सकारात्मकता का संदेश देती आज की बेटियाँ... बहुत सुंदर रचना दी..👌

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  4. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (24-09-2019) को     "बदल गया है काल"  (चर्चा अंक- 3468)   पर भी होगी।--
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  5. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  6. नए ज़माने की बेटी को, उसके हौसले को और उसकी ऊंची उड़ान को सलाम !

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  7. वाह सुधा जी! उड़ान हो जिनकी हौसलों पे वे स्वयं उड़ते हैं और दूसरों को उड़ने का सबक देते हैं ।
    बहुत बहुत सुंदर।

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  8. निरीह नहीं होतीं बेटियाँ,न उनके पंख निष्क्रिय .अपने हौसलों में उड़ान भऱ सकती हैंवे.

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  9. शानदार लेखन
    नया संसार होगा वो बेटियों के मुताबिक।

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  10. बहुत सुन्दर ...
    आज बेटियाँ खुद भी उड़ रही हैं और अपनों के सपने भी पूरा कर रही हैं...
    वाह!!!

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  11. वाह!!बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति सुधा जी ।

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  12. चल आज तुझे भी
    अपने साथ
    नए आकाश में
    उड़ना सीखाऊँ मैं....
    अब मैं निरीह नहीं माँ,
    मैं नए जमाने की बेटी हूँ ।
    बहुत खूब ....

    जवाब देंहटाएं

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