मेरी जुबानी : मेरी आत्माभिव्यक्ति
मेरी कविताओं ,कहानियों और भावों का संसार.
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रविवार, 10 दिसंबर 2017
पुरवाई
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अब स्वप्न हो गए.... वो मेड़ों के बीच से कलकल बहता जल वो पुरवाई, वो शीतल मंद बहता अनिल , गालों को चूमती वो मीठी बयार वो फगुआ...
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