मेरी जुबानी : मेरी आत्माभिव्यक्ति
मेरी कविताओं ,कहानियों और भावों का संसार.
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बुधवार, 3 मई 2017
आख़िरी लम्हा
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आख़िरी लम्हा और हाथ से रेत की तरह फिसल गया जो कुछ अपना सा लगता था! दोनों हाथों को मैं निहारता रहा बेबस, लाचार, निरीह - सा और सोचत...
सोमवार, 20 मार्च 2017
एक परिणय सूत्र ऐसा भी...
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साथ रहते -रहते दशकों बीत गए पर न् मैंने तुम्हे जाना, न् तुम् मुझे जान पाए। फिर भी एक साथ एक छत के नीचे जीए जा रहे है। क्या इसी को ...
शनिवार, 28 मई 2016
मन की बात
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इतना जान लें बस हमें कि हम कोई खिलौना नहीं , चोट लगती है हमें और दर्द भी होता है । हमारे भीतर भी भावनायें है जो आह बनकर निकलती हैं टीस...
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