गीत :इस गगन से परे (10,12)
इस गगन से परे,
है मेरा एक गगन
झूमते ख्वाब हैं
नाचे चित्त हो मगन
1
अपनी पीड़ा को
खुद से परे कर दिया
दीप उम्मीद का
देहरी पर धर दिया
अब धधकती नहीं
मेरे चित्त में अगन ...इस गगन से...
2
प्यारी खुशियों से
वो जगमगाता सदा
चंदा तारों से
हरदम रहे जो लदा
नाचती कौमुदी
होता मन का रंजन .... इस गगन से...
3
हुआ उज्ज्वल धवल
मेरे मन का प्रकोष्ठ
गाल पर लालिमा
मुस्कुराते हैं ओष्ठ
हर्ष से झूमता
फिर से मेरा तन मन.... इस गगन से...
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