ताउम्र गुजार दी हमने,
जीवन की इस आपाधापी में!
अपना इक सुंदर - सा
जीवन की इस आपाधापी में!
अपना इक सुंदर - सा
आशियाना बनाने में ।
जब दो पल का आराम मिला,
तो आशियां मेरा खाली मिला ।
न वो थे,
जिनके लिए बनाया था ये आशियां।
न हम ,हम रह पाए ,
जिसने सजाया था ये आशियां।
खाली दीवारों से टकराकर लौटती हुई आवाजें ,
मुझे मुँह चिढा रही हैं ।
मानों मुझे आईना दिखा रही हैं ।
उन सुनहरे पलों की याद दिला रही हैं ।
जो रेत की मानिन्द ,
मेरे हाथों से फिसल गई ।
और मैं खाली हाथ मलती रह गई ।
अब तो इष्ट से जिरह करनी है मुझे,
कि एक उम्र और चाहिये मुझे ,
अपना आशियां फिर से बसाने के लिए ।
अपनी पूरी जिंदगी अपनों के साथ बिताने के लिए ।
सुधा सिंह 🦋
सुधा सिंह 🦋
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