मेरी जुबानी : मेरी आत्माभिव्यक्ति
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शुक्रवार, 18 सितंबर 2015
मेघा रे।।
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कृषकों के दृग हैं अम्बर पर, आ जाओ अब मेघा रे। तपन करो अब दूर धरा की, ऐसे बरसो मेघा रे। दूर देश की छोड़ यात्रा, दे दो दर्शन अपना ...
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