मेरी जुबानी : मेरी आत्माभिव्यक्ति
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बुधवार, 3 मई 2017
आख़िरी लम्हा
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आख़िरी लम्हा और हाथ से रेत की तरह फिसल गया जो कुछ अपना सा लगता था! दोनों हाथों को मैं निहारता रहा बेबस, लाचार, निरीह - सा और सोचत...
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