गिरी थी, संभली थी,उठी थी ,चली थी।
चुभे थे कंकड़, और ठोकरें लगी थी।1।
शिथिल क्लांत सी, एकाकी डगर पर।
सुरसाओं से, मेरी जंगें छिड़ी थी।2।
आँखें की कोरों का सैलाब था शुष्क ।
फिर भी अकेले ही मैं चल पड़ी थी।3।
जिजीविषा कभी छोड़ी गई ना।
विधाता की लेखनी से मेरी ठनी थी।4।
कर्म पथ पर ही थी निगाहें मेरी ।
मंजिल ही एक ध्येय, मेरी बनी थी।5।
बड़ी हसरतों से, पुकारा जो उनको ।
चीत्कारों की मेरी,अनुगूंज लौटी थी ।6।
छेड़ा फिर एक युद्ध, नियति से मैंने।
कभी ऊपर थी वो,और मैं नीचे पड़ी थी।7।
हूँ मनु सुता, मैं अपराजित सदा थी।
ललकारा था मैंने ,और तनकर खड़ी थी।8।
जोश था उर मेें मेरे, नतमस्तक हुई वो।
हार थी उसने मानी,मेरे जय की घड़ी थी।9।
बहुत खूब... ,लाज़बाब सृजन ,सादर नमस्कार
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद सखी कामिनी
हटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंवाह सुन्दर विचार प्रेरणास्पद प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका ऋतु जी
हटाएंप्रिय सुधा जी,
जवाब देंहटाएंजिजीविषा सदा उन्नत ही रहेगी तेरी,
तु मनु सुता है, अपराजिता है,
होगी विजय हमेशा तेरी l
तू स्वयं कवच है,अपनी ढाल आप है,
सामने तेरे नियति की क्रूरता
कर जोड़, बंदिनी है तेरी l
ऐसी अविजित शक्ति की स्वामिनी सुधा जी को आत्मवनदन I
दिल जीत लिया मेरा।ये प्रेम है आपका।इस प्रेमवृष्टि के लिए अनेकानेक धन्यवाद आपका🙏🙏
हटाएंतूलिका थमने न पाए, मंजरी पल - पल बढ़े l
हटाएंशब्दों का ये काफिला, नित नयी रचना गढ़े ll
शुभकामनाओं सहित.... रेणु sackna
जवाब देंहटाएंजिजीविषा कभी छोड़ी गई ना।
विधाता की लेखनी से मेरी ठनी थी।4।
कर्म पथ पर ही थी निगाहें मेरी ।
मंजिल ही एक ध्येय, मेरी बनी थी।5।
वाह!!!
बहुत ही लाजवाब सृजन...।
सखी उत्साहवर्धन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आपका।🙏
हटाएंबहुत सुन्दर आदरणीया
जवाब देंहटाएंआभार पूजा जी।
हटाएंसुधा दी, जीजिविषा ही इंसान को जीने की प्रेरणा देती हैं। बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंप्रतिक्रिया के लिए आभार ज्योति जी
हटाएंBohot hi umda
जवाब देंहटाएंAapki rachna bohot khubsurat hai
Ji Shukriya aapka
हटाएंजिजीविषा कभी छोड़ी गई ना।
जवाब देंहटाएंविधाता की लेखनी से मेरी ठनी थी।4।
वाह!!!
बहुत ही लाजवाब सृजन...।
सराहना हेतु शुक्रिया संजय जी।
हटाएंआदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच( सामूहिक भाव संस्कार संगम -- सबरंग क्षितिज [ पुस्तक समीक्षा ])पर 13 मई २०२० को साप्ताहिक 'बुधवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य"
जवाब देंहटाएंhttps://loktantrasanvad.blogspot.com/2020/05/blog-post_12.html
https://loktantrasanvad.blogspot.in
टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'बुधवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'
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जवाब देंहटाएंहूँ मनु सुता, मैं अपराजित सदा थी।
जवाब देंहटाएंललकारा था मैंने ,और तनकर खड़ी थी।8।
बहुत सुंदर प्रेरक सृजन प्रिय सुधा जी। 👌👌👌🙏😊😊
आपकी प्रतिक्रिया सदैव आल्हादित कर है दीदी। आभारी हूँ। नमन🙏💟💟
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