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सोमवार, 27 मई 2019

कनकपुष्प

कनकपुष्प..

जेठ की कड़कती दुपहरी में
जब तपिश और गर्मी से सब
लगते हैं कुम्हलाने ।
नर नारी पशु पाखी सबके
बदन लगते हैं चुनचुनाने ।
जब सूखने लगते हैं कंठ
और हर तरफ मचती है त्राहि त्राहि।

तब चहुंँदिस तुम अपनी
रक्तिम आभा लिए बिखरते हो ।
सूरज की तेज प्रखर
रश्मियों में जल जलकर
तुम और निखरते हो।
तुम जो जीवन की इन विडम्बनाओं को
ठेंगा दिखाते हुए सोने से दमकते हो।
अब तुम ही कहो गुलमोहर
तुम्हें कनक कहूँ या पुष्प ।

गुलमोहर तुम कनकपुष्प ही तो हो,
जो पुष्प की तरह अपना सुनहरा 
रक्ताभ लिए खिलखिलाते हो।
और जीवन के सबसे कठिन दौर में
भी बिना हताश हुए मुस्कुराते हो।

हे कनकपुष्प, यदि तुम्हें गुरु मान लें
तो अतिश्योक्ति न होगी!!!



21 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही बेहतरीन रचना सुधा जी

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  2. वाह बहुत सुन्दर रचना कनक पुष्प सुंदर शब्द मन भाया।
    अप्रतिम

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    1. धन्‍यवाद कुसुम दी. आपकी प्रतिक्रिया मन में जोश भरती है 🙏

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  3. चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया शास्त्री जी. सादर 🙏

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुंदर... ,लाजबाब.. रचना

    जवाब देंहटाएं
  5. सुधा सखी, गुलमोहर को गुरु मान लिया !
    कनक पुष्प गाथा मन को भा गई.

    दिनकरजी की पंक्ति याद आ गई...
    "लाक्षा गृह में जो जलते हैं,वे ही सूरमा निकलते हैं."

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    उत्तर
    1. आपकी प्रतिक्रिया ने मेरी रचना को मायने दे दिए नुपूरम जी. बहुत बहुत शुक्रिया 🙏 🙏

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  6. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 29/05/2019 की बुलेटिन, " माउंट एवरेस्ट पर मानव विजय की ६६ वीं वर्षगांठ - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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    उत्तर
    1. ब्लॉग बुलेटिन में शामिल करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया शिवम जी 🙏 🙏 नमन

      हटाएं
  7. कनक पुष्प की गुरूता मुबारक...

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    उत्तर
    1. शुक्रिया वाणी जी. आपको भी बहुत बहुत मुबारक. सादर अभिवादन 🙏

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  8. प्राक्रितिक सुंदरता से सराबोर ,कोमल एहसास वाली सुंदर रचना ।

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  9. हे कनकपुष्प, यदि तुम्हें गुरु मान लें
    तो अतिश्योक्ति न होगी!!! ...
    सच में क़ुदरत का नायाब सबक़ है गुलमोहर ...

    जवाब देंहटाएं

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