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शनिवार, 6 अप्रैल 2019

नयन पाश


खिंचा आया था पुष्प में, अलि की तरह
पाश में ऐसा जकड़ा, निकल न सका।

इन निगाहों ने ऐसा असर कर दिया
न मैं जिंदा रहा, और न मर ही सका।
है प्रशांत सबसे गहरा, या चितवन तेरे
डूबा मैं जब से इनमें, उबर न सका।

खिंचा आया था पुष्प में अलि की तरह...

व्योम नीला अधिक है, या दृग हैं तेरे
आज तक और अभी तक, न तय कर सका।
आया हूँ जब से , मतवारे नयनन के द्वार
खोया खुद को , अभी तक मैं पा न सका।

खिंचा आया था पुष्प में अलि की तरह.....

मैं यायावर अहर्निश,  तेरी अभिलाषा में
रह गया प्यासा, मरु- सर को पा न सका।
है ये कैसी कशिश, कैसा अहसास है,
है पारावार किंतु, तृष्णा मिटा न सका।

खिंचा आया था पुष्प में, अलि की तरह
पाश में ऐसा जकड़ा, निकल न सका ।










24 टिप्‍पणियां:

  1. वाहह्हह... मस्त...बहुत सुंदर लिखा आपने दी👌👌👌👌

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    1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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    2. लूट लेती हो मुझे अपने शब्दों से प्यारी श्वेता ❤️

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  2. वाह ! लेखन में चित्रकला सी सुंदर अभिव्यक्ति !

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  3. बहुत ही बेहतरीन रचना सुधा जी

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  4. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    ८ अप्रैल २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  5. खिंचा आया था पुष्प में, अलि की तरह
    पाश में ऐसा जकड़ा, निकल न सका।
    वाह कजरारे नैनो के सम्मोहन पर स्नेहिल उदगार !!!बहुत सुंदर सृजन प्रिय सुधा जी | सस्नेह --

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  6. आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया ने मुझे खूब हौंसला दिया है. हृदय तल से आपका आभार 🙏 🙏 🙏

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