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शनिवार, 2 फ़रवरी 2019

वो संदली एहसास...


वो संदली एहसास..

खुला
यादों का किवाड़,
और बिखर गई
हर्ष की अनगिन
स्मृतियाँ.
झिलमिलाती
रोशनी में नहाई
वो शुभ्र धवल यादें,
मेरे दामन से लिपट कर
करती रही किलोल.
रोमावलियों से उठती
रुमानी तरंगे और
मखमली एहसासों
के आलिंगन संग,
बह चली मैं भी
उस स्वप्निल लोक में,
जहाँ मैं थी, तुम थे
और था हमारे
रूहानी प्रेम का वो
संदली एहसास.
खड़े हो कर दहलीज पर,
जो गुदगुदा रहा था
हौले- हौले से मेरे मन को,
और मदमस्त थी मैं
तुम्हारे आगोश में आकर.

सुधा सिंह 📝


6 टिप्‍पणियां:

  1. यादों का संदली एहसास!!!
    बहुत सुन्दर...
    जो गुदगुदा रहा था
    हौले- हौले से मेरे मन को,
    और मदमस्त थी मैं
    तुम्हारे आगोश में आकर.
    बहुत लाजवाब।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत बहुत शुक्रिया सुधा जी 🙏 🙏 🙏 सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. अहसासो को बहुत ही संजीदगी से पिरोया है

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत बहुत आभार आदरणीय संजय जी 🙏 🙏 🙏 सादर

      हटाएं

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