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शनिवार, 19 जनवरी 2019

तहरीर



तहरीर

अपने हाथों से अपनी तकदीर लिखनी है
अब मुझे एक नई तहरीर लिखनी है।

डूबेगी नहीं मेरी कश्ती साहिल पे आके
समंदर के आकिबत अब जंजीर लिखनी है ।

जिनकी कोशिश थी हरदम झुके हम रहें
उनके हिस्से अब अपनी तासीर लिखनी है ।

रहे ताउम्र लड़ते गुरबतों में तूफानों से जो
देके मुस्कान उन्हें मंद समीर लिखनी है ।

रूसवा होते रहे जो आशिक महफ़िलों में सदा
इज्जत-ओ-एहताराम उनकी नजीर लिखनी है।

होश हो जाए फाख्ता मुल्क के गद्दारों के
कुछ ऐसी अब मुझे तदबीर लिखनी है।

आफताब बन चमके नाम- ए- हिन्दोस्तां 'सुधा'
तहजीब की एक ऐसी जागीर लिखनी है।



*आक़िबत= अन्त, परिणाम, भविष्य
तदबीर =तरकीब, युक्ति


सुधा सिंह 📝


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