IBlogger interview

शुक्रवार, 2 मार्च 2018

फाग कहीं यो बीत न जाए!





मैं बिरहन हूँ प्रेम की प्यासी
न रँग, न कोई रास है!
बदन संदली सूल सम लागे
कैसा ये एहसास है!

तुम जब से परदेस गए प्रिय
ये मन बड़ा उदास है!

बिना तुम्हारे रंग लगाए,
फाग कहीं यो बीत न जाए!
सखिया मोहे रोज छेड़ती
कहती क्यो तोरे पिया न आए!

टेसू पलाश के रंग न भाए,
गुलमोहर भी बिछ - बिछ जाए !
कस्तुरी सांसो की खुशबू,,
तुमको अपने पास बुलाए!

बिंदिया में अब चिलक न कोई,
झांझर भी मेरी रूठ गई है!
मेहँदी अब न सजन को राजी,
पाँव महावर छूट गई है!

काहे तुम परदेस गए प्रिय,
यह दूरी अब सही नहीं जाए!
पुरवईय्या तन अगिन लगाए,
तुम बिन हिय को कुछ नहीं भाए!

उर का द्रव बनकर निर्झरणी 
झर- झर झर- झर बहता जाए!
तेरे दरस को अंखियाँ तरसी,
पल - पल नयन नीर बरसाए!

न होली की उमंग कोई है,
न कोई उल्लास है!
तुम जब से परदेस गए प्रिय,
ये मन बड़ा उदास है!






कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

पाठक की टिप्पणियाँ किसी भी रचनाकार के लिए पोषक तत्व के समान होती हैं ।अतः आपसे अनुरोध है कि अपनी बहुमूल्य टिप्पणियों द्वारा मेरा मार्गदर्शन करें।☝️👇